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Yogi Adityanath: आज ही पीठाधीश्वर बने थे योगी आदित्यनाथ

BY: Itvnetwork Team • LAST UPDATED : September 14, 2023, 4:09 pm IST
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Yogi Adityanath: आज ही पीठाधीश्वर बने थे योगी आदित्यनाथ

Peethadhishwar Yogi Adityanath

India News ( इंडिया न्यूज), Yogi Adityanath: लखनऊ। ब्रह्मलीन महंत, गोरक्षपीठाधीश्वर अवेद्यनाथ जैसे प्रभावशाली, सर्वस्वीकार्य, हर किसके लिए ‘बड़े महाराज’ के करीब दो दशक के संरक्षण के बाद 14 सितंबर 2014 को उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी से पीठाधीश्वर बने थे। नाथपंथ की सबसे बड़ी माने जाने वाली इस पीठ पर योगीजी के गुरु महंत अवेद्यनाथ 34 साल तक और उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ 45 वर्ष तक पीठाधीश्वर रहे।

उल्लेखनीय है कि 12 सितंबर 2014 को महंत अवेद्यनाथ ब्रह्मलीन हुए थे। 14 सितंबर को उनको समाधि देने के पहले नाथ पंथ और सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार योगी जी का अभिषेक किया गया। उसके बाद पंचों (रेवती रमण दास, पीडी जैन,अरुणेश शाही, धर्मेंद्र वर्मा और मारकंडेय यादव) ने उनको पीठाधीश्वर का आसन ग्रहण कराया।

क्यों खास है गोरक्षपीठ

गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ खुद में बेहद खास है। पिछले 100 साल में धर्म, समाज और राजनीति के हर क्षेत्र में इस पीठ के पीठाधीश्वरों ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। यह पूर्वांचल की अध्यक्षीय पीठ है। श्रद्धा का ऐसा केंद्र जिसके आगे बड़े-बड़े लोग नतमस्तक होते रहे हैं। पीठ जिसके सिर पर हाथ रख दे वह सांसद, मेयर, चेयरमैन, एमएलसी और विधायक बन जाता है। इतिहास इसका गवाह है। यह पीठ लोक का धड़कन और विश्वास है। संकट का साथी है। भटकने पर मार्गदर्शक और हताशा में उत्साह का संचार करने वाली पीठ है। पीठ की सामाजिक समरसता की बेहद मजबूत और गहरी जड़ें सारे जातीय समीकरणों और दलीय समीकरणों पर भारी पड़ती हैं। पीठ का संदेश या सुझाव आदेश सरीखा होता है।

सुदीर्घ है पीठ का विस्तार

गोरक्षपीठ का विस्तार केवल गोरखपुर या पूर्वांचल तक नहीं है। इसका विस्तार देश में उत्तराखंड से मीनाक्षीपुरम तक तथा देश से बाहर नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यामांर से पाकिस्तान (पेशावर) तक है। पांच देशों एवं देश के दस राज्यों में नाथपंथ से जुड़े पांच हजार से अधिक मठ- मन्दिरों के किसी भी विवाद पर अंतिम निर्णय गोरक्षपीठ का ही होता है।

शिक्षा की अलख जगाने वाली ज्योति है गोरक्षपीठ

गोरक्षपीठ समाज से छुआछूत, जाति-पात और अंधविश्वास का विरोध करने वाली एक ताकत के रूप में है। समाज में शिक्षा की अलख जगाने वाली ज्योति है। 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना और वर्तमान में इससे संबद्ध प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय तक के 50 से अधिक संस्थान इसके प्रमाण हैं। यही नहीं, यह पीठ अशक्तों के सस्ते उपचार के लिए नए दरवाजे खोलने वाली संस्था और गोवंश की रक्षक भी है।

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