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राम कैसे बने पुरुषोत्तम श्रीराम? इस नारी का था हाथ, जानिए इसके पीछे की कहानी

Himanshu Pandey • LAST UPDATED : September 30, 2024, 9:05 pm IST
राम कैसे बने पुरुषोत्तम श्रीराम? इस नारी का था हाथ, जानिए इसके पीछे की कहानी

Siyaram

India News (इंडिया न्यूज), Siyaram: मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम की कथा और महिमा का वर्णन रामायण में पूर्ण रूप से किया गया है। श्री राम मर्यादा के प्रतीक थे जिन्होंने अपने जीवन में सदैव मर्यादा का पालन किया, अपने पिता की आज्ञा पर बचपन में ही गुरुकुल चले गए। बड़े होने पर माता कैकेयी और पिता दशरथ के वचन को पूरा करने के लिए राजगद्दी छोड़कर वन चले गए। श्री राम एक ऐसे पुरुष थे जिन्होंने दूसरों की खुशी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। वे एक अच्छे पुत्र, पति, पिता और राजा थे। भगवान राम श्री हरि विष्णु के अवतार हैं और वे देवताओं की इच्छा पूरी करने के लिए राम के रूप में अवतरित हुए।

श्री राम के जीवन में इन महिलाओं का मुख्य स्थान

बता दें कि, मंथरा, कैकेयी, शूर्पणखा, रामायण में इन सभी महिलाओं का भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाने में बहुत बड़ा हाथ था, इन सभी ने भगवान द्वारा लिखी गई लीला को पूरा करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनके द्वारा किए गए कृत्य इतिहास में हंसी का पात्र बन गए। इन तीनों स्त्रियों ने लोक कल्याण के लिए सभी बुराइयों को अपने ऊपर ले लिया और इनकी सहायता से भगवान ने वन जाने से लेकर रावण और रावण की सेना के अंत तक की वीर गाथा लिखी।

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भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की कहानी

भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम बनाने में सबसे महत्वपूर्ण पात्र उनकी पत्नी जगत जननी आदि शक्ति माता सीता थीं। जब भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम बने तो उनकी अर्धांगिनी माता सीता का नाम इसलिए लेना पड़ा क्योंकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब श्री राम वनवास समाप्त कर राज्याभिषेक के बाद अयोध्या लौटे तो नगर के लोगों ने माता सीता के चरित्र पर प्रश्न उठाए कि वे रावण के यहां रहकर आई हैं तो वे पवित्र कैसे हो सकती हैं? यही कारण था कि माता सीता को महल छोड़कर पुनः वन जाना पड़ा। राज दरबार में एक स्थान पर महर्षि वाल्मीकि ने कहा, ‘श्रीराम! मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि सीता पवित्र और पतिव्रता हैं और कुश और लव आपके पुत्र हैं, मैं कभी झूठ नहीं बोलता। यदि मेरा कथन मिथ्या है तो मेरी सारी तपस्या व्यर्थ हो जाएगी, मेरे इस कथन के बाद सीता स्वयं आपके समक्ष अपनी निर्दोषिता की शपथ लेगी।’ माता कैकेयी ने श्री राम के लिए वन जाने का वचन ले लिया था लेकिन माता सीता स्वेच्छा से प्रभु के साथ हो गई और 14 वर्षों तक कष्टों की भागीदार बनी, यदि माता सीता वन में नहीं जाती तो समाज श्री राम को बहुत कुछ कहता लेकिन माता सीता वन में गई और श्री राम का हर कार्य में सहयोग किया। प्रभु मर्यादा पुरुषोत्तम बन गए लेकिन माता सीता को फिर से वनवास हो गया।

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