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Old age Golden Period of Life वृद्धावस्था जीवन का स्वर्णिम काल

India News Editor • LAST UPDATED : October 9, 2021, 12:54 pm IST

Old age Golden Period of Life

डॉ. अर्चिका दीदी

सामान्यतया लोग सोचते हैं कि जैसे-जैसे इन्सान की आयु बढ़ती है, उसकी शारीरिक क्षमता, बल, काम करने की इच्छा, काम करने की शक्ति, योग्यता, मानसिक सामर्थ्य में कमी आने लगती है, विशेषकर 40 वर्ष की आयु के बाद तो लोग इसे प्राकृतिक अवश्यम्भावी मानते हैं, किन्तु शोध के द्वारा अब यह सिद्ध हो चुका है कि ऐसी सोच, ऐसी धारणा, ऐसा विचार बिल्कुल गलत है। गैबरियल गाशिया मारकुयज ने अपनी पुस्तक बन हण्डरण्ड यीरर्ज आफ सालीचूड में लिखा है, अच्छी वृद्धावस्था का यह रहस्य है कि यह अकेलेपन के साथ एक सम्मानजनक समझौता है।

गैबरियल कोलम्बिया के अत्यन्त प्रसिद्ध लेखक हैं, जिन्होंने शोध के आधार पर कहा है कि वृद्धावस्था मानव जीवन का वह पड़ाव है, जहां व्यक्ति एकान्त में शान्तिपूर्ण जीवन बिता सकता है, उसकी शारीरिक शक्ति भले ही कम हो जाये, किन्तु अगर उसकी इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो वह सभी कार्य कुशलता से कर सकता है, मैं तो बल्कि यह कहूंगा कि उसके जीवन का अनुभव होता है, उसने दुनिया के उतार-चढ़ाव देखे होते हैं, वह कार्य के सकारात्मक नकारात्मक पहलुओं से परिचित है, इसलिये वह कार्य को ज्यादा सफलता के साथ कर सकता है। इसी प्रकार अमेरिका का कोलम्बिया विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर मौरा बोलररीनि ने लिखा है कि हमने देखा है कि युवाओं की भांति प्रोजैनीटर सैलों से हजारों हियोकैमपाल नये न्यूरौन बन बनाने की योग्यता होती है। दूसरे शब्दों में जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, व्यक्ति का मस्तिष्क अधिक समर्थ बनता जाता है, क्योंकि बे्रन सेल्स का ज्यादा उत्पादन होता है और उसके पास वर्षों की बुद्धिमता एवं अनुभव की सम्पत्ति भी होती है।

इसलिए आयु बढ़ना, काउंटडाउन का प्रारम्भ नहीं, अपितु यह काउंट-उप का समय है। बल्कि वृद्धजनों के योजनायुक्त स्किल और बौद्धिक योग्यता का दुनिया बहुत फायदा उठा सकती है। वास्तव में, इस तरह से वृद्धजन अपना अनुभव और योग्यता आने वाली सन्तानों को भेंट रूप में दे रही हैं, ताकि वे उसका लाभ उठा सकें। इस दृष्टि से भारतीय चिन्तन बिल्कुल स्पष्ट है। शास्त्रों में मानवीय जीवन को चार भागों, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम में बांटा गया है। जीवन का यह विभाजन बुद्धिमत्ता पर आधारित है। सद्गुरुदेव जी महाराज तो बड़े स्पष्ट शब्दों में अपने शिष्यों को प्रेरणा देते हैं कि मानव जीवन अनमोल है, इसको बुद्धिपूर्वक नियोजित कीजिये, ब्रह्मचर्य एवं गृहस्थ जीवन का शास्त्रोक्त नियमों के अनुसार पालन करके चलाईये और 50 वर्ष की आयु के आस-पास अपने मन को विरक्ति की ओर चलाना प्रारम्भ कर दीजिये, धीरे-धीरे मोह को छोड़ते हुए वानप्रस्थ में प्रवेश कीजिये अर्थात आयु के इस पड़ाव में परिवार से, सम्पत्ति से, रिश्तों से प्रेम आदर रखें, किन्तु मोह नहीं, गुरुदेव यह भी फरमाते हैं कि व्यायाम प्राणायाम, सन्तुलित पौष्टिक भोजन, सद्विचारों, सद्व्यवहार, सद्वाणी, सन्तुलन, ईश्वरपूजन, जप, योग-यज्ञ का जीवन में नियम बनाईये तो वृद्धावस्था एक वरदान बन जाता है।

वास्तव में वृद्धावस्था जीवन का वह स्वर्णिम काल है, जब व्यक्ति के पास ज्ञान, अनुभव और परिपक्वता की अपूर्व सम्पत्ति होती है, जिससे वह समाज और धर्म की सेवा करते हुए अर्थपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकता है। अधिकतर लोग अपनी नासमझी, अपने क्रोधी स्वभाव लालसा, मोह के कारण अपने जीवन की खुशियों को समाप्त कर लेते हैं, बल्कि परिवारों में बेटियों, बहुओं, बच्चों को हर बात में टोक कर अपना सम्मान स्वयं कम कर लेते हैं। आयु बढ़ना एक स्वाभाविक प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसलिये इससे बुढ़ापे की हीन भावना नहीं आनी चाहिए कि मैं तो अब कमजोर हूं, लाचार हूं, दूसरों पर निर्भर हूं, बल्कि इसके विपरीत आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भर होकर दूसरों का भी सहयोगी बनकर स्वयं को उपयोगी सिद्ध करना चाहिए। वृद्धावस्था जीवन की वह सांझ है, जहां अनुभव का प्रकाश दमकता है, जहां मधुर वाणी की बयार बहती है, जहां प्रेम और स्नेह की भागीरथी प्रवाहित होती है।

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