Raj Kapoor Birth Anniversary
Raj Kapoor Birth Anniversary: रोज की तरह एक उमस भरा दिन था. मुंबई (तब बॉम्बे) के चर्चित स्टुडियो में फिल्म की शूटिंग चल रही थी. डायरेक्टर थे केदार शर्मा. एक लड़का सबको उत्सुकता भरी नजरों से देख रहा था. कभी डायरेक्टर के पास खड़ा हो जाता तो कभी एक्टर्स की बातें सुनता. उसकी आंखें लगातार घूमतीं और हर बार कुछ नया देखना चाहती थीं. 13-14 बरस का यह लड़का बतौर स्पॉट ब्वॉय सेट पर खड़ा था. इशारा हुआ तो यह लड़का फिल्म के सेट पर क्लैप बोर्ड लेकर खड़ा हो गया. लाइट कैमरा रेडी थे, सिर्फ एक्शन का इंतजार था. इस शॉट में लीड एक्टर के आगे क्लैप बोर्ड का इस्तेमाल होना था. इस बीच इस लड़के का ध्यान और नजर दोनों कैमरे पर चली जाती हैं. इसके बाद यह लड़का धीरे से एक्टर के काफी नजदीक जाकर क्लैप बोर्ड जोर से बजाता है. जरा सी गलती और क्लैप बोर्ड लीड एक्टर की दाढ़ी में फंस जाता है या कहें दाढ़ी क्लैप बोर्ड में फंस जाती है. डायरेक्टर केदार शर्मा को लड़के की इस हरकत पर गुस्सा आता है. इसके बाद वो उस लड़के को झन्नाटेदार थप्पड़ मार देते हैं. गाल पर हाथ रखे यह लड़का चुपचाप वहां से चला जाता है, हालांकि, थप्पड़ मारने का एहसास केदार शर्मा को कुछ देर बाद ही हो जाता है. यह लड़का था- राजकपूर. महान एक्टर पृथ्वीराज का बेटा. वक्त का पहिया घूमता रहा और यही लड़का आगे चलकर फिल्म इंडस्ट्री का पहला शो मैन बना.
पिता पृथ्वीराज कपूर को हमेशा थिएटर करते देखा. ऐसे में बचपन से ही एक्टिंग के प्रति लगाव हो गया. राजकपूर की उम्र यही कोई 10 बरस की रही होगी, जब उनके मन में एक्टर/हीरो बनने का ख्याल आया. इसके बाद बड़े होने के साथ ही राज कपूर के दिल में हीरो बनने की तमन्ना जाग उठी. वह पिता के साथ शूटिंग पर आते तो सेट पर पहुंचते ही अपने बाल संवारने लगते. राजकपूर जब बड़े हुए तो वह अधिक संजीदा हो गए. उन्हें यह भी एहसास हो गया कि पिता पृथ्वीराज कपूर बरगद हैं और उन्हें आगे बढ़ना है तो बरगद से तो जुड़ना है, लेकिन उसकी छांव से मुक्ति पानी है. राज कपूर यह बखूबी जानते थे कि उनका संघर्ष अलग किस्म का है. यह महज आर्थिक नहीं, बल्कि एक उम्दा कलाकार के रूप में खुद को स्थापित करना है.
राज कपूर जब फिल्म इंडस्ट्री में आए तो उन पर यह नैतिक दबाव था कि पृथ्वीराज का बेटा है तो कुछ-ना-कुछ कर ही लेगा. कम से कम रोजी-रोटी का संकट तो नहीं रहेगा. यह बात खुद सेट पर राज कपूर भी सुन चुके थे. पृथ्वीराज कपूर की राज कपूर को हिदायत और नसीहत थी कि एक्टर बड़ा अपने कामों से बनता है ना कि पिता की छाया में रहकर. पिता ने कभी यह भी वादा नहीं किया कि वह बेटे राज कपूर को बतौर हीरो किसी फिल्म में लॉन्च करेंगे. यही वजह थी कि राज कपूर ने सिर्फ 10 साल की उम्र से ही पिता के साथ फिल्म के सेट पर जाना शुरू कर दिया. सेट पर वह अपने पिता से दूरी बनाकर रखते थे. यह राज कपूर का बड़प्पन भी था कि उन्होंने स्पॉटबॉय से करियर की शुरुआत की. उन्होंने सेट पर मौजूद कलाकारों का चाय तक पिलाई. सच बताएं तो राज कपूर ने अपने करियर की शुरुआत एक क्लैपरबॉय के रूप में की.
बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि जिस डायरेक्टर केदार शर्मा ने राज कपूर को सेट पर थप्पड़ मारा था. उन्होंने ही राज कपूर को पहला ब्रेक भी दिया. स्टोरी में पहले ही केदार शर्मा द्वारा सेट पर राज कपूर को थप्पड़ मारने का जिक्र हो चुका है. इसके बाद जो हुआ वह इतिहास बन गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राज कपूर को केदार शर्मा ने सबके सामने थप्पड़ मारा था. बाद में उन्हें इसका अफसोस भी हुआ. केदार शर्मा ने कुछ महीनों के बाद राज कपूर को अपने दफ्तर बुलाया. कुछ देर बातचीत करने के बाद एक फिल्म का ऑफर दे दिया. यह ऑफर सुनकर राज कपूर की आंखों में आंसू आ गए. वह फफक-फफक कर रोने लगे. इस पर केदार शर्मा ने राज कपूर से पूछा भी था, ‘मारा तब तो तुम नहीं रोए फिर आज क्यों रो रहे?’ इस पर राज कपूर ने रोते हुए कहा था- ‘जी मैं रो नहीं रहा ये तो खुशी के आंसू हैं, मेरा सपना पूरा हो रहा है.’ इस तरह केदार शर्मा ने अपनी फिल्म ‘नील कमल’ में राज कपूर को बतौर लीड एक्टर सिलेक्ट किया. यह फिल्म बनी, रिलीज हुई और कामयाब भी रही.
राज कपूर की पहली फिल्म नीलकमल (1947) बनी. इसमें राज कपूर के साथ मधुबाला ने मुख्य भूमिका निभाई थी. बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ठीकठाक चली, लेकिन इसे हिट या सुपरहिट नहीं कहा जा सकता है. हालांकि, इस फिल्म में बतौर हीरो और कलाकार फिल्म इंडस्ट्री ने नोटिस कर लिया था. यह राज कपूर के लिए बड़ी और अहम बात थी. कुल मिलाकर नीलकमल’ (1947) में मुख्य भूमिका मिलने के बाद उनके करियर की दिशा बदल गई. इसके एक साल के भीतर राज कपूर में गजब का आत्मविश्वास आया और उन्होंने आरके स्टूडियो की स्थापना की. इसी आरके स्टुडियो के बैनर तले उन्होंने 1948 में बतौर निर्देशक ‘आग’ बनाई. इसमें राज कपूर खुद हीरो भी थे. 6 अगस्त 1948 को ‘आग’ रिलीज हुई थी. भले ही उन्होंने 1935 में बतौर अभिनेता अपना करियर शुरू कर दिया था, लेकिन 23 साल की उम्र में राज कपूर ने ‘आग’ का निर्देशन करके तहलका मचा दिया था.
‘आग’ में पहली बार राज कपूर और नरगिस एक साथ दिखाई दिए थे. इसके बाद दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया था. दोनों की करीब-करीब सभी फिल्में हिट रहीं. बहुत कम लोग जानते होंगे कि फिल्मों के क्रेडिट्स में एक्ट्रेस का नाम सबसे पहले देने का चलन इसी फिल्म से शुरू हुआ था. ‘आग’ फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास सफल नहीं रही थी. फिल्म ने औसत कारोबार किया था. इसके एक साल बाद ही एक निर्देशक के रूप में राज कपूर की पहली बड़ी हिट बरसात (1949) थी. इस फिल्म ने सिर्फ राज कपूर और नरगिस को ही स्थापित नहीं किया, बल्कि संगीतकार शंकर-जयकिशन और गीतकार शैलेंद्र को भी इसी फिल्म से करियर की उड़ान मिली. यह अलग बात है कि शैलेंद्र ने सिर्फ दो ही गीत फिल्म में लिखें, लेकिन टाइटस सॉन्ग ने तो कमाल कर दिया.
राज कपूर सिनेमा के शोमैन बने. दशकों तक वह शोमैन रहे और सदियों तक उनके साथ यह तमगा रहेगा. लेकिन एक समय था जब उन्हें दुत्कार और अपमान सहना पड़ा था. वर्ष 1930 की घटना है. तब राज कपूर सिर्फ 6 साल के थे और बॉम्बे के सेंट जेवियर स्कूल में पढ़ रहे थे. स्कूल के ऑडिटोरियम में नाटक का मंचन चल रहा था. 6 साल के राज कपूर ने पादरी की तरह लंबा चोगा पहना था. लंबाई से ज्यादा लंबा चोगा पहनने से राज कपूर को दिक्कत हो रही थी. इसी टेंशन में राज कपूर अपने एक-दो डायलॉग भी भूल गए. अगले सीन में स्टेज के कोने से एंट्री लेने के दौरान लंबा चोंगा राज कपूर के पैरों में फंस गया. राज कपूर स्टेज पर गिर पड़े. यह देखकर दर्शक हंस पड़े. ऊपर से नाटक भी खराब हो गया. सीन खत्म होने पर राज कपूर जब बैक स्टेज गए तो प्रिंसिपल ने गर्दन पकड़ ली और थप्पड़ों की बरसात कर दी. प्रिंसिपल ने चिल्लाते हुए कहा- ‘तुम एक्टर हो? तुम्हारे पिता एक्टर हैं? मुझे तो लगता है तुम गधे हो. बाहर निकलो और फिर कभी मत आना.’ थप्पड़ खाने के बाद राज कपूर बदहवास से रहे, लेकिन कुछ देर बाद रो पड़े. लेकिन राज कपूर ने इसे सबक के तौर पर लिया. उन्होंने इसी स्कूल में पढ़ाई के दौरान थिएटर में गहरी रुचि ली. इसके बाद कई नाटकों में काम किया.
14 दिसंबर,1924 राज कपूर का जन्म तहसीलदार दीवान मुरली माल कपूर के घर पर हुआ. उनका बेटा दीवान बशेश्वरनाथ कपूर इंडियन इंपीरियल पुलिस में ऑफिसर था. इसके अलावा पेशावर के किस्सा ख्वानी बाजार में बड़ी सी हवेली भी थी. इससे भी पहले 3 नवंबर, 1906 को दीवान बशेश्वरनाथ के घर बेटे पृथ्वीराज कपूर का जन्म हुआ था. इस दौर में उनके पिता और दादाजी का ल्यालपुर, समुद्री और पेशावर में बड़ा रुतबा था. आसपास उनकी काफी इज्जत और नाम था. बशेश्वरनाथ बेटे पृथ्वीराज को वकील बनाना चाहते थे, इसलिए दाखिला वकालत में करवाया. वहीं, ब्रिटिश शासन के दौरान ही हिंदुस्तान में सिनेमा की नींव पड़ चुकी थी. यह अलग बात है कि पृथ्वीराज ने वकालत तो शुरू की, लेकिन सालभर बाद उनका रुझान और झुकाव नाटकों की तरफ होने लगा. पिता नाराज हुए. फिर भी पृथ्वीराज कपूर ने वकालत को अधूरा छोड़कर नाटकों में काम करने लगे. इसके बाद नाटकों में काम करते-करते पृथ्वीराज कपूर बोम्बे आ गए और फिल्मों में सफर शुरू कर दिया. उनके नाटकों में उस दौर के सभी नामी कलाकार काम करते थे.
पृथ्वीराज कपूर अभिनय की दुनिया में आए तो उनके बच्चों का आना भी एक तरह से तय हो गया था. इसके साथ ही पृथ्वीराज कपूर की वो भविष्यवाणी भी सच साबित हो गई. बताया जाता है कि वर्ष 1923 में 17 साल की उम्र में पृथ्वीराज कपूर की शादी 15 साल की राम सरणी मेहरा से हुई. परिवार चलता रहा. आर्थिक दिक्कत नहीं थी, इसलिए पृथ्वीराज कपूर ने अपना सारा ध्यान नाटकों पर लगाया. चंद महीने के बाद पत्नी राम सरणी गर्भवती हो गईं. बताया जाता है कि पृथ्वीराज कपूर ने तब भविष्यवाणी की थी कि उनकी पहली संतान लड़का ही होगा. यह भी कहा जाता है कि बच्चे के जन्म से पहले ही उन्होंने कागज के एक टुकड़े पर लिख दिया था- ‘रणबीर राज’. इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी के तकिए के नीचे रख दिया. पृथ्वीराज अपने बेटे को यही नाम देना चाहते थे. यह भविष्यवाणी सच साबित हुई. 14 नवंबर, 1924 को राम सरणी मेहरा ने बेटे को जन्म दिया. पृथ्वीराज कपूर ने कुछ वजहों से बेटे का नाम रणबीर राज की जगह सृष्टि नाथ कपूर रखा. बाद में राज कपूर हो गया. पिता पृथ्वीराज के नाम सृष्टि नाथ कपूर को दुनिया ने शोमैन राज कपूर के नाम से जाना.
राजकपूर के बाद पृथ्वीराज कपूर और राम सरणी मेहरा के घर रविंदर और देवेंदर का जन्म हुआ. इसके बाद पृथ्वीराज कपूर ने वर्ष 1927 में बॉम्बे जाकर बसने का फैसला कर लिया, जिससे वह फिल्मों में हाथ आजमा सकें. कहा जाता है कि बेटे के इस फैसले से पिता दीवान बशेश्वरनाथ कपूर खुश नहीं थे. बॉम्बे जाने के फैसले का विरोध करते हुए पिता ने आर्थिक मदद देने से सीधे-सीधे मना कर दिया. बताया जाता है कि इसके बाद पृथ्वीराज कपूर ने अपनी आंटी से पैसे उधार लिए. इसके बाद पत्नी, तीन बच्चों को लेकर बॉम्बे आ गए. लंबे संघर्ष के बाद पृथ्वीराज कपूर ने 1929 में फिल्म ‘बेधारी तलवार’ से हिंदी सिनेमा में कदम रखा. इससे पहले उन्होंने खूब थिएटर किया.
वर्ष 1931 का वाकया है. एक रोज राज कपूर अचानक घर के नौकर के साथ पिता के स्टूडियो पहुंचे. कहा पिता जी रविंदर बहुत बीमार है. घर आए, तो पता चला कि भाई बिंदू ने दुनिया को ही अलविदा कह दिया. बिंदू राज कपूर से 4 साल छोटे थे. रविंदर का निकनेम बिंदू था. कहा जाता है कि बिंदू ने चूहे मारने वाली गोलियों को चॉकलेट समझकर निगल लिया था. एक तरह से परिवार में दुर्भाग्य की शुरुआत हो गई थी. एक हफ्ते बाद उनके दूसरे भाई देवेंदर को तेज बुखार आ गया. इलाज के दौरान उसकी भी मौत हो गई. बाद में पता चला कि देवेंदर को निमोनिया हो गया था. राज कपूर ने दो भाई खोए तो परिवार ने दो बेटे. परिवार लंबे समय तक सदमे में रहा. इसके बाद शम्मी और शशि का जन्म हुआ. दोनों में राज कपूर से 7-14 साल का गैप था. बताते हैं कि लंबा गैप और बड़ा भाई होने के चलते दोनों भाइयों को बेटों को तरह प्यार करते थे. दरअसल, राज कपूर और उनके छोटे भाई शम्मी कपूर की उम्र में 7 साल का फासला था.
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