Talaq e Hasan meaning in Islam: सुप्रीम कोर्ट से बुधवार को याचिकाकर्ता बेनजीर हिना को बड़ी राहत मिली, दरअसल हिना ने तलाक-ए-हसन की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी, जिसमें उसने अपने बच्चे के लिए पति से 10 हजार रूपये की मांग की थीं. उनकी यह जीत उन महिलाओं के लिए भी प्रेरणास्त्रोत है, जिनके पतियों ने उन्हें तलाक-ए-हसन जैसी प्रथाओं के बाद छोड़ दिया और उन्हें और उनके बच्चों को उनके हक से महरूम छोड़ देते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने हिना की याचिका को सुनने के बाद यह कदम उठाया. लेकन इस फैसले के बाद मन में एक सवाल खड़ा होता है कि आखिरकार तलाक-ए-हसन क्या होता है, जिसके तहत हिना के पति ने उसे तलाक दिया साथ ही आज हम यह भी जानेंगे कि तलाक-ए-हसन के आलाव और कितने तलाक होते है, जो महिलाओं के अधिकारों के विरुद्ध हैं.
क्या होता है तलाक-ए-हसन?
इस्लाम धर्म में तलाक के कई तरीके बताए गए है, जिसमें तलाक-ए-हसन उनमें से एक तरीका है, इस दौरान पति अपनी पत्नी को 3 महिने में 1-1 बार तलाक बोलता है, जिसका मतलब है, जब पत्नी मासिक धर्म से गुजरने के बाद शुद्ध यानी पवित्र होती है और अगर इस दौरान पहले महिने में पति पत्नी के बीच शारीरिक संबंध नहीं बनते तो पति पहला तलाक बोलता है, जिसके बाद दुसरे महिने में जब पत्नी दुबारा मासिक धर्म से गुजरती है और अगर इस दौरान पति पत्नी में दुसरे महीने में शारीरिक संबंध बन जाता है तो मतलब सुलाह हो चुकी है और पहले महीने में बोला गया तलाक रद्द हो जाता है, लेकिन अगर इस दौरान ऐसा कुछ नहीं होता तो फिर पति पत्नी को दुसरी बार तलाक बोल सकता है, इसके बाद तीसरे महिने भी यही प्रक्रिया होती है. और पत्नी के मासिक धर्म के बाद पति तीसरी बार तलाक बोलता है, जिसके बाद तलाक जयाज माना जाता है.
तलाक-ए-हसन के अलाव और कितने प्रकार के होते है तलाक
तलाक-ए-अहसन: इसमें पति सिर्फ़ एक बार “तलाक” कहता है. पति के “तलाक” कहने के बाद, पत्नी तीन महीने का इंतज़ार करती है. इस दौरान, पति चाहे तो तलाक रद्द कर सकता है. इसे सबसे आसान तरीका माना जाता है, क्योंकि इसमें सुलह की काफ़ी गुंजाइश होती है. इद्दत एक अरबी शब्द है जिसका मतलब है गिनना. इद्दत इस्लामी कानून के तहत एक ज़रूरी जरूरत है. यह आम तौर पर इंतज़ार का वह समय होता है जो एक औरत अपने पति की मौत के बाद या तलाक़ के बाद रखती है. कुरान की आयतें भी इद्दत (इंतज़ार का समय) की अहमियत पर ज़ोर देती हैं.
तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक़): इसमें आदमी एक बार में तीन बार “तलाक” कहकर शादी खत्म कर देता है. इसमें सुलह या सुलह की कोई गुंजाइश नहीं होती. भारत समेत कई मुस्लिम देशों जैसे मिस्र, सीरिया, जॉर्डन, कुवैत, इराक और मलेशिया में तलाक का यह तरीका बैन है. भारत में, सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में इसे गैर-कानूनी और गैरकानूनी घोषित कर दिया था.
खुला (ओपन): मुस्लिम समाज में महिलाओं के पास भी तलाक का ऑप्शन होता है. महिलाएं खुला तलाक ले सकती हैं. खुला तलाक के तहत, एक महिला बिना कोर्ट के दखल के अपने पति से तलाक मांग सकती है. हालांकि, इस तरह के तलाक के लिए महिला को मेहर देना होता है, जो शादी के समय पति द्वारा दिया गया पैसा होता है। खुला तलाक के लिए पति की सहमति भी जरूरी है. अगर पति सहमत नहीं है, तो पत्नी इस्लामिक काउंसिल या कोर्ट में तलाक के लिए अप्लाई कर सकती है. यह प्रोसेस आमतौर पर गवाहों और बिचौलियों के साथ लिखकर रिकॉर्ड किया जाता है.
मुबारक तलाक क्या है?
इस्लाम में, अगर पति और पत्नी के बीच रिश्ता इतना बिगड़ जाता है कि वे अब खुशी-खुशी साथ नहीं रह पाते हैं और दोनों अलग होना चाहते हैं, तो वे आपसी सहमति से तलाक ले सकते हैं. इस तरीके को शांति से और बिना किसी झगड़े के अलग होना माना जाता है, जहां दोनों पार्टनर अपने फैसले खुद लेते हैं.
इस्लाम मुस्लिम महिलाओं को क्या अधिकार देता है?
इस्लाम में, महिलाओं को शादी और तलाक के मामलों में कई अधिकार दिए गए हैं, खासकर मेहर का अधिकार. मेहर का संबंध पत्नी की सुरक्षा से है. मेहर पैसा या ज़मीन हो सकती है जो पति को शादी के समय अपनी पत्नी को देना होता है. कुरान में सूरह अन-निसा और सूरह अल-बक़रा में मेहर का ज़िक्र है. सूरह अन-निसा में यह आदेश दिया गया है कि पति शादी के बाद महिलाओं को तोहफे दें.
तलाक का अधिकार
महिलाएं खुला (शादी खत्म करना), मुबारत (आपसी सहमति), या फस्ख (काज़ी/कोर्ट द्वारा तलाक) के जरिए अपनी शादी खत्म कर सकती हैं. तलाक-ए-अहसन (तलाक) के जरिए तलाक में, पति अपनी पत्नी की इद्दत (इंतज़ार का समय) के दौरान उसे पैसे से मदद करने के लिए जिम्मेदार होता है.