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ब्रह्मोस जासूसी मामले में पूर्व साइंटिस्ट निशांत अग्रवाल को क्लीनचिट, हाईकोर्ट ने खारिज किए देशद्रोह जैसे आरोप!

Nishant Agarwal BrahMos Case: निशांत अग्रवाल को अक्टूबर 2018 में महाराष्ट्र-उत्तर प्रदेश स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) और मिलिट्री इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट के जॉइंट ऑपरेशन में नागपुर से गिरफ्तार किया गया था. उस समय, वह इंडो-रशियन जॉइंट वेंचर ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड के टेक्निकल रिसर्च सेंटर में सीनियर सिस्टम इंजीनियर थे. अब हाई कोर्ट ने उन्हें सभी गंभीर आरोपों से पूरी तरह बरी कर दिया है. ऐसे में चलिए विस्तार से जानें कि यह पूरा मामला क्या था?

क्या था पूरा मामला?

जानकारी के मुताबिक, निशांत अग्रवाल को अक्टूबर 2018 में महाराष्ट्र-उत्तर प्रदेश ATS और मिलिट्री इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट के जॉइंट ऑपरेशन में नागपुर से गिरफ्तार किया गया था. उस समय, वह इंडो-रशियन जॉइंट वेंचर, ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (BAPL) के टेक्निकल रिसर्च सेंटर में सीनियर सिस्टम इंजीनियर थे. उनके पर्सनल लैपटॉप और कंप्यूटर पर ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल से जुड़े कई कॉन्फिडेंशियल डॉक्यूमेंट्स मिले, जो कंपनी के सिक्योरिटी प्रोटोकॉल का साफ उल्लंघन था.
आरोप था कि उन्हें पाकिस्तानी इंटेलिजेंस एजेंटों ने हनी-ट्रैप किया था. एक नकली महिला प्रोफ़ाइल, “सेजल शर्मा” ने लिंक्डइन पर उनसे संपर्क किया और दावा किया कि वह UK-बेस्ड हेस एविएशन कंपनी के लिए एक रिक्रूटर हैं. बेहतर नौकरी का लालच देकर बातचीत आगे बढ़ी. 2017 में, निशांत ने सेजल के कहने पर, उसके भेजे एक लिंक पर क्लिक किया और अपने लैपटॉप पर तीन खतरनाक ऐप इंस्टॉल कर लिए. ये ऐप्स असल में मैलवेयर थे जो उनके सिस्टम से डेटा चुराकर पाकिस्तानी हैंडलर्स को देते थे. जांच में पता चला कि “सेजल शर्मा” समेत कई नकली प्रोफाइल एक पाकिस्तानी जासूसी नेटवर्क का हिस्सा थे, जो भारतीय डिफेंस साइंटिस्ट और दूसरे लोगों को हनीट्रैप में फंसाने के लिए फोटो, डेटा और टेक्नोलॉजी शेयर करते थे.

निचली अदालत ने 14 साल की सुनाई थी सजा

नागपुर की एक निचली अदालत ने उन्हें ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की अलग-अलग धाराओं के तहत दोषी ठहराया था और 14 साल जेल की सजा सुनाई थी. हालांकि, हाई कोर्ट ने जासूसी, देशद्रोह और सेंसिटिव जानकारी लीक करने समेत सभी बड़े आरोपों को खारिज कर दिया था. सिर्फ एक ही दोष साबित हुआ, वह था पर्सनल डिवाइस पर सरकारी कॉन्फिडेंशियल डॉक्यूमेंट रखने का (OS एक्ट के सेक्शन 3(1)(c) का मामूली उल्लंघन), जिसके लिए उन्हें तीन साल जेल की सजा सुनाई गई थी. क्योंकि निशांत अग्रवाल 2018 से तीन साल से ज़्यादा जेल में बिता चुके हैं, इसलिए उन्होंने अपनी सज़ा पूरी कर ली है और तुरंत रिहाई के हकदार हैं.

हालांकि हाई कोर्ट ने माना कि कॉन्फिडेंशियल डॉक्यूमेंट्स एक पर्सनल डिवाइस पर थे, लेकिन प्रॉसिक्यूशन यह साबित नहीं कर सका कि निशांत अग्रवाल ने जानबूझकर या देशद्रोह के इरादे से पाकिस्तान को कोई जानकारी लीक की. इस आधार पर, सभी गंभीर आरोप (जासूसी, युद्ध छेड़ने की साज़िश, वगैरह) हटा दिए गए, और सिर्फ पर्सनल डिवाइस पर कॉन्फिडेंशियल डॉक्यूमेंट्स रखने का छोटा सा जुर्म बचा, जिसके लिए वह पहले ही जेल की सज़ा काट चुका था.

shristi S

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