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ना जलाया और ना दफनाया जाएगा रतन टाटा का पार्थिव शरीर, जानिए आसमान में कैसे होगा ‘दोखमेनाशिनी’?

BY: Sohail Rahman • LAST UPDATED : October 10, 2024, 11:39 am IST
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ना जलाया और ना दफनाया जाएगा रतन टाटा का पार्थिव शरीर, जानिए आसमान में कैसे होगा ‘दोखमेनाशिनी’?

Ratan Tata last rites ( रतन टाटा का इस तरह से होगा अंतिम संस्कार )

India News (इंडिया न्यूज), Ratan Tata last rites: भारत के दिग्गज उद्योगपति और टाटा संस के चेयरमैन रतन टाटा का निधन हो गया है। उन्हें तबियत खराब होने पर मुंबई के कैंडी ब्रीच हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, वह 86 साल के थे। गुरुवार (10 अक्तूबर, 2024) को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। उनका अंतिम संस्कार वर्ली में राजकीय सम्मान से किया जाएगा। रतन टाटा पारसी थे। इसलिए उनका अंतिम संस्कार पारसी रीति-रिवाज के अनुसार होगा। ऐसे में आज हम आपको इस स्टोरी में हम इसके बारे में बताएंगे कि देश के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा का अंतिम संस्कार कैसे होगा। 

ऐसे होता है पारसी लोगों का अंतिम संस्कार

पारसी लोगों का अंतिम संस्कार हिंदू, मुस्लिम और ईसाइयों से अलग होता है। हम सभी जानते हैं कि, हिंदू शवों को जलाते हैं तो वहीं मुस्लिम और ईसाई दोनों शवों को दफनाते हैं। पारसी लोग शवों को खुले में सूरज और पक्षियों के लिए छोड़ देते हैं। यानी शवों को गिद्धों और चीलों के हवाले कर दिया जाता है। बौद्ध धर्म के लोग भी इसी तरह अंतिम संस्कार करते हैं। हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, अंतिम संस्कार की ये प्रक्रिया पारसियों में 3000 साल से चली आ रही है। दरअसल शवों को जिस स्थान पर छोड़ा जाता है, उसे टॉवर ऑफ साइलेंस कहते हैं। यह एक गोलाकार इमारत होती है। लेकिन यह खोखली होती है। इस बारे में पारसी लोगों का कहना है कि, वह शवों को आकाश में दफन करते हैं। इस प्रक्रिया को दोखमेनाशिनी कहते हैं।

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भारत में पारसी समुदाय की संख्या कितनी है? 

भारत में साल 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक केवल 57,264 पारसी हैं। ऐसा बताया जाता है कि, करीब 1200 साल पहले पारसी लोग भारत आए थे। यह जोरोस्ट्रियन धर्म को मानने वाले लोग हैं, जो दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। यह धर्म ईसा से भी करीब दो हजार साल पुराना है। ये लोग पर्शिया से आए थे इसलिए भारत में इन्हें पारसी कहा गया। पर्शिया का मतलब आज के समय में ईरान से है। ईरान में साल 641 तक जोरोस्ट्रियन धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा थी। लेकिन इस देश में जब अरब पहुंचे तो युद्ध में पर्शिया के राजा यज्देगर्द शहरियार की मौत हो गई थी। उनकी मौत के बाद उत्पीड़न से बचने के लिए जोरोस्ट्रिन लोगों का पलायन शुरू हुआ और ऐसा कई सदियों तक चला। इन्हीं लोगों में से 18 हजार लोगों का एक जत्था भारत पहुंच गया था। 

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