Aravalli Hills: उत्तर दिशा में दिल्ली से दक्षिण के गुजरात तक फैली अरावली इन दिनों चर्चा में बनी हुई है. इसका दो तिहाई हिस्सा राजस्थान से गुजरता है. धीरे-धीरे ये अरावली अपनी पहचान खो रही है. लगातार हो रहे अवैध खनन से अब अरावली का हिस्सा गायब हो रहा है. हाल ही में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इसकी नई परिभाषा ने इसके अस्तित्व को संकट में डाल दिया है. पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिश के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस परिभाषा को स्वीकार कर लिया है. परिभाषा ये है कि अरावली के 100 मीटर से ऊंचे पर्वत को ही अरावली का हिस्सा माना जाएगा. वहीं अरावली के एक हिस्से में चोरी-छिपे खनन का काम चल रहा है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद आम लोगों और पर्यावरण प्रेमियों में आक्रोश देखने को मिल रहा है. इसे बचाने के लिए सोशल मीडिया पर #SaveAravalli ट्रेंड कर रहा है. वहीं पर्यावरण संरक्षकों की तरफ से अरावली को बचाने के लिए प्रदर्शन भी किया जा रहा है. आइए जानते हैं कि अरावली को बचाना क्यों जरूरी है?
बता दें कि अरावली कोई साधारण पहाड़ नहीं हैं. ये देश की सबसे पुरानी माउंटेन रेंज है. अरावली पर्वत यह थार रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकते हैं. ये थार रेगिस्तान की गर्म, धूल भरी हवाओं को पूर्व की ओर बढ़ने से रोकती है. अगर अरावली हटती है, तो उपजाऊ मैदान भी रेगिस्तान में बदल सकते हैं.
बता दें कि अरावली के कटने से पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका असर पड़ेगा. इससे सूखा, बाढ़, प्रदूषण का खतरा बढ़ जाएगा. इससे लाखों परिवारों पर इसका असर पड़ेगा. भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की जान खतरे में पड़ जाएगी.
दिल्ली-NCR और पश्चिमी UP समेत तमाम राज्यों की हवा को साफ करती है. ये दिल्ली-NCR के लिए “फेफड़े” (Green Lungs) की तरह काम करती है. ये प्रदूषकों को रोककर हवा साफ करती है. इसके बावजूद दिल्ली समेत पूरा देश खराब हवा की मार झेल रहा है. प्रदूषण के कारण लोगों को अस्थमा समेत तमाम स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है. प्रदूषण को अनदेखा करते हुए अगर इन पहाड़ों को हटा दिया जाता है, तो जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाएंगे.
आपको जानकर हैरानी होगा लेकिन अगर अरावली को काट दिया जाएगा, तो जल संकट आ सकता है. अरावली की चट्टानें बारिश के पानी को सोखकर ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करती है. ये भूजल दिल्ली-NCR और आसपास के इलाकों के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. इन पहाड़ों के काटने से भूजल कम हो जाएगा. दिल्ली के कई इलाकों के लोगों को अभी भी गर्मी के समय में पानी की कमी के कारण दिक्कत होती है. ऐसे में अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ये पहाड़ कटते हैं, तो केवल दिल्ली-एनसीआर ही नहीं अन्य जगहों पर भी पानी के लिए त्राहि-त्राहि होगी.
जैसा कि सब लोग जानते हैं कि जंगल में जंगली जानवर रहते हैं और यही उनका घर होता है. ऐसे में अगर अरावली को हटाया जाएगा, तो तेंदुआ, सियार, शेर समेत तमाम जानवर बाहर आ जाएंगे. इससे आम लोगों को परेशानी हो सकती है.
पहाड़ों को हटाने के लिए पेड़-पौधे काटे जाएंगे. इससे ऑक्सीजन की कमी के साथ ही कई पेड़-पौधों की प्रजातियां खत्म हो जाएंगी. इतना ही नहीं इनमें छिपी औषधियां भी खत्म हो जाएंगी, जिसका असर आयुर्वेद पर भी देखने को मिलेगा.
अरावली से चंबल, साबरमती और लूनी जैसी कई महत्वपूर्ण नदियां निकलती है. पहाड़ों के हटने से इन पर भी असर पड़ेगा. ये धीरे-धीरे खत्म भी हो सकती हैं. या तो यहां पर बाढ़ जैसे आसार देखने को मिल सकते हैं.
अरावली पर्वत स्थानीय जलवायु को स्थिर करती है और तापमान को बढ़ने से रोकती है. साथ ही वर्षा चक्र को बनाए रखने में मदद करती है. इनके कटने से गर्मी और सर्दी ज्यादा बढ़ जाएगी. साथ ही बारिश पर भी इसका असर पड़ेगा.
कहा जा रहा है कि इस जंगल को खनन के लिए काटा जा रहा है. अगर स्थानीय लोगों की मानें, तो अरावली में खनन पर रोक लगा दी गई थी. इसके बावजूद चोरी छिपे वहां अवैध खनन हो रहा है. एनडीटीवी द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया कि क्रेशर की आवाज और डंपरों की आवाजाही के निशानों का पीछा करते हुए एनडीटीवी के रिपोर्ट वहां पहुंचे. हालांकि कागजों में खनन बंद है, लेकिन अलवर एनसीआर का इलाका खनन से बुरी तरह प्रभावित दिखा. भानगढ़ के पास कई खानें दिखीं. आसपास रखी मशीनें और स्थानीय लोगों से पता चला कि चोरी छिपे अभी भी माइनिंग का खेल चल रहा है.
अरावली को बचाने की दिशा में अगर बात की जाए, तो सुप्रीम कोर्ट को अपना फैसला वापस लेना होगा. साथ ही वैज्ञानिक आधार पर अरावली की परिभाषा तय करनी होगी. इसके अलावा खनन पर रोक लगानी होगी. बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण व पुनरुद्धार (restoration) के काम करने के लिए निर्देश देने होंगे.
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