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डा. रविंद्र मलिक, चंडीगढ़। गत 6 वर्षों से हरियाणा के डायरेक्टर आफ प्रासिक्यूशन (निदेशक, अभियोजन) अर्थात प्रदेश सरकार की नियमित सेवा में कार्यरत सरकारी वकीलों के निदेशालय के प्रमुख के पद पर तैनात नरशेर सिंह के स्थान पर मौजूदा एडिशनल डायरेक्टर संजय हुड्डा को प्रोमोट कर डायरेक्टर आफ प्रासिक्यूशन (जनरल) बनाया जा सकता है।
इस सम्बन्ध में केस फाइल हाल ही में न्याय-प्रशासन विभाग द्वारा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पास उनकी सहमति हेतु भेजी गई है। प्रदेश में ताजा नियमानुसार प्रासिक्यूशन निदेशालय के डायरेक्टर पद पर केवल न्यूनतम एक वर्ष की सेवा वाला प्रासिक्यूशन का एडिशनल डायरेक्टर ही प्रोमोट (पदोनत्त) होकर नियुक्त हो सकता है।
25 फरवरी 2022 को हरियाणा राज्य अभियोजन विभाग विधिक सेवा (ग्रुप ए) नियमों, 2013 में संशोधन कर ऐसा प्रावधान लागू किया गया। इससे पूर्व अक्टूबर, 2013 में बने मूल नियमों में एडिशनल डायरेक्टर के साथ साथ 10 वर्षो की एडवोकेट के तौर पर अनुभव वाला डिस्ट्रिक्ट अटार्नी (जिला न्यायवादी) भी प्रमोशन से डायरेक्टर, प्रासिक्यूशन बनने हेतु योग्य होता था।
नए डायरेक्टर की नियुक्ति हेतु हाई कोर्ट चीफ जस्टिस की स्वीकृति हेतु फाइल भेजकर हरियाणा सरकार द्वारा सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता), 1973, जो हरियाणा सहित पूरे देश में लागू है, की मौजूदा धारा 25 ए की आंशिक अनुपालना ही की गई है क्योंकि उक्त धारा के अनुसार प्रदेश प्रॉसिक्यूशन निदेशालय के डायरेक्टर पद पर न्यूनतम 10 वर्षों की प्रैक्टिस करने वाला हर एडवोकेट (वकील) योग्य होता है अर्थात इस पद पर सीधी भर्ती से भी नियुक्ति की जा सकती है हालांकि हरियाणा में ऐसी व्यवस्था नहीं की गई है।
मामले को लेकर उपरोक्त जानकारी देते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि इसके अलावा ताजा सेवा नियमो में संशोधन द्वारा अब निदेशक, अभियोजन (डायरेक्टर और प्रासिक्यूशन ) के वर्षो से चले आ रहे एक पद के स्थान पर दो पद बना दिए दिए हैं, इनमें एक निदेशक, अभियोजन (जनरल) और दूसरा निदेशक, अभियोजन (स्पेशल)।
हेमंत ने बताया कि ऐसे इसलिए करना पड़ा ताकि मौजूदा निदेशक नरशेर सिंह, जो मार्च, 2016 से निदेशक, अभियोजन के पद पर तैनात हैं उनके स्थान पर नया डायरेक्टर तैनात किया जा सके क्योंकि जून, 2018 में हरियाणा सरकार द्वारा बनायीं नीति अनुसार प्रदेश का कोई भी विभागाध्यक्ष-हेड आफ डिपार्टमेंट अधिकतम तीन वर्षों तक ही ऐसे पद पर रह सकता है जिसके बाद विभाग में उससे जूनियर अधिकारी को प्रोमोट कर विभागाध्यक्ष बनाना पड़ेगा।
इसी विषय पर विभाग के एक अतिरिक्त निदेशक सुखबीर सिंह द्वारा गत वर्ष 2021 में हाईकोर्ट में रिट याचिका भी डाली गई थी जिसके फलस्वरूप डायरेक्टर प्रासिक्यूशन के दो पद बनाने पड़े थे ताकि मौजूदा डायरेक्टर नरशेर सिंह को डायरेक्टर, प्रासिक्यूशन (स्पेशल) तैनात किया जा सके।
नरशेर सिंह की रिटायरमेंट साढ़े 3 वर्ष बाद अर्थात अक्टूबर, 2025 में होगी। वहीं याचिकाकर्ता सुखबीर चूंकि 30 अप्रैल 2022 को सेवानिवृत्त हो गए हैं जिस कारण वह तो डायरेक्टर, प्रासिक्यूशन (जनरल) नहीं बन पाए हालांकि उनसे जूनियर संजय हुड्डा, जिनकी रिटायरमेंट अगस्त, 2027 में होगी, वह उस पद पर नियुक्त हो सकते हैं।
इसी बीच मोजूदा डायरेक्टर, प्रासिक्यूशन नरशेर सिंह द्वारा भी हाई कोर्ट में उपरोक्त डायरेक्टर के दो पद बनाने के विरूद्ध एक रिट याचिका दायर की गयी है जिस पर बीती 5 अप्रैल को हाई कोर्ट के एक डिवीजन बेंच ने प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया जिस पर अगली सुनवाई 26 मई हो होगी।
हेमंत ने बताया कि वास्तव मे हरियाणा में सरकारी वकीलों का विभाग प्रॉसिक्यूशन नहीं बल्कि न्याय-प्रशासन (एडमिनिस्ट्रेशन आफ जस्टिस) होता है जो सीधा प्रदेश के होम सेक्रेटरी (गृह सचिव) के अधीन होता है। वहीं प्रॉसिक्यूशन का दर्जा विभाग के अंतर्गत एक निदेशालय (डायरेक्टोरेट) का है।
हरियाणा सरकार कार्य (आबंटन) नियमावली, 1974 जिसमें प्रदेश सरकार के सभी 54 विभागों का नाम है, में प्रासिक्यूशन (अभियोजन) के नाम से कोई भी विभाग नहीं है।
सीआरपीसी, 1973 की मौजूदा धारा 25ए, जो भारतीय संसद द्वारा वर्ष 2005 में डाली गई एवं 23 जून, 2006 से देश में लागू हुई में भी स्पष्ट उल्लेख है कि राज्य सरकार द्वारा प्रासिक्यूशन निदेशालय गठित किया जाएगा जिसमें एक डायरेक्टर और उतने डिप्टी-डायरेक्टर (उप निदेशक) होंगे जितने राज्य सरकार चाहे एवं इन पदों पर नियुक्ति हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की स्वीकृति से की जाएगी।
इसमें यह भी स्पष्ट उल्लेख है कि प्रदेश का प्रासिक्यूशन का डायरेक्टर उस निदेशालय का प्रमुख होगा जो प्रदेश के गृह विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करेगा। अब जबकि प्रासिक्यूशन को न केवल हरियाणा के कार्य आबंटन नियमों में बल्कि उपरोक्त धारा 25 ए में भी विभाग नहीं बल्कि निदेशालय के तौर पर उल्लेख किया गया है इसलिए प्रदेश के प्रासिक्यूशन डायरेक्टर को प्रासिक्यूशन निदेशालय का प्रमुख तो कहा जा सकता है परन्तु प्रासिक्यूशन विभाग का नहीं अत: प्रासिक्यूशन विभाग का विभागाध्यक्ष (एचओडी) होने या बनाने का प्रश्न ही नहीं उठता।
हरियाणा में न केवल प्रदेश के डायरेक्टर, प्रासिक्यूशन बल्कि उस निदेशालय के डिप्टी डायरेक्टर्स के संबंध में भी सीआरपीसी, 1973 की मौजूदा धारा 25ए का पूर्ण अनुपालन नहीं जा रहा है।
इसलिए उन्होने हाल ही में हरियाणा सरकार को नोटिस दिया है कि या तो प्रदेश सरकार द्वारा उपरोक्त कानूनी धारा की पूर्ण अनुपालना की जाए अन्यथा हरियाणा में व्याप्त व्यवस्था को कानूनी मान्यता देने हेतु प्रदेश विधानसभा द्वारा धारा 25 ए में उपयुक्त संशोधन करवाना होगा।
कुछ वर्ष पूर्व कर्नाटक और मध्य प्रदेश की राज्य सरकारों द्वारा ऐसा किया गया। वर्ष 2020 में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों नई यू.टी. के सम्बन्ध में केंद्र सरकार द्वारा ऐसा किया गया था।
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