Rehman Dakait Akshaye Khanna Dhurandhar Movie
Rehman Dakait Akshaye Khanna Dhurandhar Movie: 9 अगस्त, 2010 की रात पाकिस्तान के आपराधिक इतिहास में पुलिस के जरिये दर्ज होने वाली थी. कराची की यह रात बहुत उदास थी. शहर में अंधेरा पूरी तरह से कायम हो चुका था. अचानक पुलिस के बूटों (जूतों) ने रात की खामोशी को आवाज़ दी. खुफिया जानकारी के आधार पर कराची पुलिस के अनगिनत जवान गलियों में छिपे थे. ज्यादातर बिना वर्दी के, जिससे वो आम शहरी लगें. इससे पहले ही कराची के एसपी चौधरी असलम ने पूरी तैयारी कर ली थी. उन्होंने पहले ही तय कर लिया था कि अब सरदार अब्दुल रहमान बलूच उर्फ रहमान डकैत (Sardar Abdul Rehman Baloch alias Rehman Dacoit) की दोबारा गिरफ्तारी नहीं होगी, बल्कि सीधा एनकाउंटर होगा. यानी रहमान डकैत का ‘दी एंड’ तय हो गया. इस बीच चौथरी असलम के मोबाइल फोन पर एक कॉल आती है. इधर से पुलिस अफसर कहता है- ‘सभी तैयार हो जाओ. मौका नहीं चूकना है. बड़ा काम होने वाला है. गली-सड़क पर रहमान डकैत को घेर लिया गया है और आज बड़ा एनकाउंटर होना तय है.’ पुलिस अधिकारी ने संकेत दे दिया था कि रहमान डकैत की खैर नहीं. चंद मिनटों बाद आला पुलिस अधिकारियों को फोन गया कि ‘काम हो गया है.’ कुछ देर बाद वहां आसपास के रहने वाले लोग पहुंच गए. मौके पर पुलिस की गाड़ियां थीं. हथियार थे और नजदीक ही ज़मीन पर खून से सना एक आदमी पड़ा था, जिसका नाम था- रहमान डकैत. ल्यारी में दशहत का अंत हो गया था, लेकिन इसकी कहानियां आज भी चर्चा में रहती हैं.
1990 और 2000 के दशक में कराची के सबसे खतरनाक अंडरवर्ल्ड में से एक रहमान डकैत (सरदार अब्दुल रहमान बलूच) था. आदित्य धर के डायरेक्शन में बनी ‘धुरंधर’ इस समय खूब चर्चा में है. इस फिल्म में अक्षय खन्ना ने पाकिस्तान के शहर कराची के नामी और खूंखार विलेन रहमान डकैत का किरदार निभाया है. उनके किरदार की खूब चर्चा हो रही है. रहमान के पिता दादल बलूच 1960 के दशक से ड्रग तस्करी के धंधे में शामिल थे. पिता को अपराध की दुनिया में देखा तो रहमान बहुत कम उम्र में उसी दुनिया में आ गया. फिल्म में रहमान की जिंदगी के कुछ हिस्सों को दिखाया गया है.
बताया जाता है कि पिता को देखकर वह भी अपराध की दुनिया से लगाव रखने लगा. 13 साल की उम्र में रहमान ने एक आदमी को चाकू मार दिया. इसके बाद आसपास के लोग उससे डरने लगे. हम उम्र भी उससे खौफ खाने लगे. यह भी अफवाह है कि उसने अपनी मां को मार डाला था. आरोप था कि रहमान की मां का नाम कथित तौर पर एक दुश्मन गैंग के सदस्य से जुड़ा था. इसका मतलब रहमान को शक था कि उसकी मां का संबंध दुश्मन गैंग से है. अवैध संबंध का शक रहमान के दिमाग पर हावी हो गया और उसने अपनी मां को मार डाला. यह अलग बात है कि इसकी पुष्टि कभी नहीं हुई. मां की हत्या का दाग माथे पर लगा तो लोगों में खौफ बढ़ गया.
रहमान इस कदर बेफिक्र था कि उसने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के भाई नूरा की हत्या कर दी थी. 9 अगस्त, 2010 की उमस भरी रात में कराची में हुए एक एनकाउंटर में रहमान समेत उसके तीन साथियों के साथ मारा गया. बताया जाता है कि कराची पुलिस को रहमान डकैत की करीब 300 मामलों में तलाश थी. इनमें हत्या और अपहरण जैसे कई संगीन मामले शामिल हैं. रहमान हैदराबाद से कराची जा रहा था. खुफिया जानकारी के आधार पर उसे रास्ते में पुलिस ने उसे ढेर कर दिया. पूरी प्लानिंग के साथ इस एन्कांउटर को अंजाम दिया गया. बताया जाता है कि एनकाउंटर के पुलिस ने उसकी और उसके साथियों के पास से गोला-बारूद के अलावा हैंड ग्रेनेट भी मिले थे.
सिर्फ 13 साल की उम्र में एक शख्स को चाकू मारने वाले रहमान ने जुर्म की दुनिया को तरजीह दी. पढ़ाई-लिखाई से उसका दूर-दूर तक रिश्ता नहीं था. बचपन से लड़ाई झगड़े से उसकी किस्मत तय हो गई थी कि वह जुर्म की दुनिया में ही कदम रखेगा. ऐसा हुआ भी. रहमान ने जब जुर्म की दुनिया कदम रखा तो उसकी उम्र सिर्फ 20 साल थी. वह 20 साल तक आते-आते खूंखार हो गया था. अब तक वह कई हत्याएं कर चुका था. उसने तो अपनी सगी मां को ही गोलियों से भून दिया था. मौत का खौफ खत्म हुआ तो उसने हर उस धंधे में हाथ डाला, जो जुर्म की दुनिया की गहरी खाई में जाता था.
रहमान को घर में जुर्म देखने और सीखने को मिला. रहमान के पिता हाजी दाद मोहम्मद उर्फ दादल अपराध की दुनिया में गहरे तक उतर चुके थे. पिता 1960 के दशक में ड्रग्स के धंधे के बादशाह बन चुके थे. सीआईडी ने 5 लाख रुपये का इनाम था, जो राशि आज करोड़ों में है. बलूचिस्तान के ल्यारी इलाके का रहना वाला रहमान पिता को अपना उस्ताद मान चुका था. कराची में जुर्म बहुत हावी था और पुलिस बेबस थी. हालात यह थे कि पुलिस भी गैंग्स के बीच नहींं आती थी. वहीं, रहमान कराची में अपना नाम कर चुका था. पुलिस भी उस पर हाथ डालने से डरती थी. कहा जाता है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ दाऊद इब्राहिम पर था, लेकिन वह रहमान को नहीं हरा सका. उल्टा रहमान ने दाऊद के भाई नूरा को मार डाला और भारत का अंडरवर्ल्ड डॉन पाकिस्तान में मन मसोसकर रह गया.
कराची के ल्यारी में हिंसा का दौर 1990 के दशक में शुरू हुआ. दो भाई थे, जिनसे हिंसा की शुरुआत हुई. रहमान के पिता दादल (दाद मुहम्मद) और शेरल भाई थे. दादल और शेरल ड्रग्स के धंधे में थे. उधर, कराची के अंडरवर्ल्ड पर एक और डॉन का राज था. वह था- काला नाग. दादल और शेरल दूसरे स्थान पर थे और शहर का राजा था काला नाग. दादल और शेरल को यह मंजूर नहीं था कि काला नाग उन पर हुक्म चलाए. यही हाल काला नाग का था. वह भी शहर पर एक छत्र राज चाहता था. शेरल और दादल ने काला नाग की हत्या करवा दी. हत्या भी ऐसी कि पूरा शहर सुनकर हिल गया. उन्होंने न केवल काला नाग का मारा, बल्कि बीच बाजार सिर काटकर लटका दिया. इसके बाद शहर में दोनों भाइयों की दहशत फैल गई.
कहते हैं ना कि सबका बाप होता है. और जो खुद को बाप समझ लेते हैं उनका बाप जल्द सामने आ जाता है. करीब 30 साल बाद कराची के ल्यारी में इकबाल उर्फ बाबू डकैत की दस्तक हुई. बाबू डकैत पढ़ा लिखा था और उसके पास फिजिक्स में मास्टर डिग्री (MSc Physics) थी. वह तो पुलिस की नाक के नीचे से ड्रग्स का धंधा चलाता था. बाबू डकैत की दस्तक के बाद दादल बेचैन हो गया और दुश्मनी हो गई. बाबू डकैत भारी पड़ा और उसने दादल को बीच बाजार में काट डाला. कुछ समय बाद ही सीआईए (CIA) ने छापा मारकर उसे गिरफ्तार किया. उससे पहले वह लकवाग्रस्त (Paralyzed) हो चुका था. इस बीच रहमान छोटे-मोटे बदमाश के रूप में चर्चा में था. उसकी हिम्मत इतनी भी नहीं थी कि वह अपने पिता की हत्या का बदला ले सके.
दादल का इकलौता बेटा सरदार अब्दुल रहमान बलोच जुर्म की दुनिया में बड़ा नाम कमाना चाहता था. इस बीच उसकी मुलाकात एक गैंगस्टर्स हाजी लालू से हुई. हाजी लालू के 7 बेटे थे. इनमें एक था अरशद पप्पू. हाजी लालू ने सरदार अब्दुल रहमान बलोच को इस कदर जुर्म की दुनिया के लिए ट्रेंड किया कि वह सरदार अब्दुल रहमान बलोच से रहमान डकैत बन गया. दोनों ड्रग्स के धंधे में पूरी तरह से सक्रिय थे. एक वाकये ने दोनों के बीच दूरी पैदा कर दी. 1990 के दशक में रहमान ने एक कारोबारी को किडनैप कर दिया. इसके बाद हाजी लालू ने कारोबारी को यह कहकर छुड़वा दिया कि वह जानकार है. बाद में सच सामने आया तो रहमान हक्का-बक्का रह गया. इससे पहले किडनैपिंग के केस में मुखबिरी करके हाजी लालू ने रहमान डकैत को गिरफ्तार तक करवा दिया. खेल यह हुआ कि हाजी लालू ने किडनैपिंग के लिए 1 करोड़ की फिरौती और रहमान को गिरफ्तार करवा दिया. जेल से बाहर निकला तो हाजी लालू और उसका बेटा अरशद पप्पू दरअसल रहमान डकैत के दुश्मन बन चुके थे.
रहमान डकैत भले ही जुर्म की दुनिया का बादशाह बन चुका था, लेकिन उसने छवि आम लोगों के बदली. इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती मरीजों का बिल भरता था. गरीबों की लड़कियों की शादी करवाता था. खेल खासतौर से फुटबॉल की प्रतियोगिता करवाता था. सड़कों के किनारे उसके नाम से लंगर चलते थे. जनता के बीच मसीहा बन चुका था. जनता साथ थी तो उसे लगता था कि पुलिस भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है. कुछ समय बाद वह लोगों को टैंकरों के जरिए महंगे दामों पर पानी बेचने लगा. इधर, रहमान ल्यारी में अपनी बादशाहत कायम कर चुका था तो उधर पुराने दुश्मन हाजी लालू का बेटा अरशद पप्पू जुर्म के मैदान में आने के लिए बेताब था. रहमान और हाजी लालू की दुश्मनी गहरी होने लगी. एक दिन हाजी लालू के बेटे अरशद पप्पू ने रहमान के पिता के कब्र तोड़ दी. वह यही नहीं रुका. अरशद पप्पू ने दुश्मन रहमान डकैत के चाचा यानी शेरल को किडनैप किया और फिर रहमान को फोन कर गोलियों की आवाज सुनाते हुए चाचा को मार डाला.
18 अक्टूबर 2007 का दिन पाकिस्तान के लिए खास था. पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो निर्वासन काटकर वतन वापस लौट रही थीं. कराची एयरपोर्ट पर लाखों की भीड़ के बीच एक ब्लास्ट में करीब 140 लोग मारे गए. इस दौरान पाकिस्तान की फौज या कराची पुलिस का कोई आला अफसर तक मौके पर नहीं था. जानकर हैरत होगी कि बेनजीर भुट्टो की बुलेटप्रूफ गाड़ी की स्टीयरिंग रहमान डकैत के हाथ में थी. रहमान उस दौरान बेनजीर का सिक्युरिटी ऑफिसर बना हुआ था. रहमान ने ही बेनजीर को सही सलामत बिलावल हाउस पहुंचाया था.
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