संबंधित खबरें
Delhi Railway News: ट्रेन यात्रियों के लिए बड़ी खबर, कोहरे के कारण इतने दिन तक बंद रहेंगी दिल्ली-हरियाणा की 6 ईएमयू ट्रेनें
UP By-Election Results 2024 live: यूपी में 9 सीटों पर उपचुनाव की वोटिंग जारी, नसीम सोलंकी की जीत तय
Bihar Bypolls Result 2024 Live: बिहार की 4 सीटों पर मतगणना शुरू! सुरक्षा पर प्रशासन की कड़ी निगरानी
Maharashtra-Jharkhand Election Result Live: महाराष्ट्र में महायुति तो झारखंड में JMM गठबंधन सरकार बनाने की तरफ अग्रसर, जानें कौन कितने सीट पर आगे
मातम में बदलीं खुशियां, नाचते- नाचते ऐसा क्या हुआ शादी से पहले उठी…
नाइजीरिया में क्यों पीएम मोदी को दी गई 'चाबी'? क्या है इसका महत्व, तस्वीरें हो रही वायरल
India News (इंडिया न्यूज),Ayodhya News: अयोध्या में श्रीराम नाम के आंदोलन की सैकड़ों कहानियां हैं। इतिहास बन चुकी इन कहानियों के पन्ने पलटने का वक़्त है। कारसेवक कोठारी बंधु (रामकुमार और शरद कोठारी) की कहानी फिर से बताने का वक़्त है। रामकुमार और शरद कोठारी मूलत: कोलकाता के रहने वाले थे। श्रीराम नाम के आंदोलन से जुड़ने की लालसा ने कारसेवक बना दिया। 80 के दशक का अंत और 90 के दशक की शुरुआत में कारसेवकों का उत्साह आसमान पर था।
वर्ष 1984 में राम मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद का आंदोलन शुरू हुआ। 1980 के दशक का अंत आते आते आंदोलन को भारतीय जनता पार्टी ने पूरे भारत तक फैला दिया। कोलकाता में दो भाई रामकुमार कोठारी और शरद कोठारी रामलला को टाट में देख कर दुखी थे। चाहते थे कि आराध्य अपने घर में विराजें। कोलकाता में कसमसाहट थी, सो कोठारी बंधुओं ने अयोध्या आने का फ़ैसला किया। पिता को जानकारी मिली तो ग़ुस्सा हो गए, कहा कि बहन पूर्णिमा की दिसंबर में शादी है और तुम लोग अयोध्या निकलना चाहते हो। प्रभु की दीवानगी के आगे पिता को झुकना पड़ा।
20 अक्टूबर 1990 की तारीख़ थी। कोलकाता में गुलाबी जाड़ा शुरू हो चुका था। कोठारी बंधु की आंखों में रामलला को तिरपाल से मंदिर में बिठाने का सपना था। कोलकाता से निकले, वाराणसी आए। ये वो दौर था जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी जिसने क़सम खाई थी कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा। वाराणसी से अयोध्या जाने वाले रास्ते बंद थे, गाड़ियों पर पाबंदी थी, सुरक्षा बल का पहरा था। कोठारी बंधु पाबंदी के मोहताज नहीं थे। रामधुन लगी थी, फ़ैसला किया कि पैदल ही अयोध्या जाएंगे।
रामकुमार और शरद कोठारी ने 300 किलोमीटर की पैदल यात्रा की। श्रीराम ने बुलाया और दोनों भाई सरयू किनारे अयोध्या पहुंच ही गए। यहां ये याद दिलाना ज़रूरी है कि इनमें से एक भाई की उम्र उस वक़्त 22 तो दूसरे की 20 साल थी। अयोध्या में कोठारी बंधु विनय कटियार के आंदोलन से जुड़ कर आगे बढ़ने लगे। पुलिस वालों ने बल प्रयोग किया तो दोनों भाईयों ने एक घर में पनाह ले ली।
पुलिस वालों ने छोटे भाई शरद कोठारी को घर से बाहर निकाला और सिर में गोली मार दी। गोलियों की आवाज़ सुन कर बड़े भाई रामकुमार बाहर आए, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पुलिसवालों ने रामकुमार को घेरा और उन्हें भी गोली का शिकार बना लिया। ये तारीख़ थी 30 अक्टूबर 1990। 34 साल गुज़र गए, कोठारी बंधु आज भी अयोध्या की मिट्टी में हैं। 22 जनवरी के दिन आसमान के पार ये दोनों भाई भी ज़रूर मुस्कुरा रहे होंगे।
अयोध्या की ऐसी कहानियों में सिर्फ रामभक्ति का जुनून ही नहीं, इतिहास का वो काला दिन भी है, जब सनातन के प्रहरियों को अपनी जान देनी पड़ी। रामलला के ‘टाट’ से ‘ठाठ’ तक आने के सफ़र में रक्तरंजित आंदोलन है। अयोध्या का शाब्दिक अर्थ है, ‘जिसके साथ युद्ध करना असंभव हो’। लेकिन सच तो ये है कि इसी अयोध्या ने धर्मयुद्ध देखा है। इसी अयोध्या ने सरयू किनारे को ख़ून से सना देखा है।
कारसेवा और शिलान्यास के वक़्त लाठी डंडे बरसते देखे हैं, गोलियां की गूंज सुनी है। बीते कुछ दशक अयोध्या के ज़ख़्म के रहे हैं, जो भर तो गए पर निशान अभी भी बाक़ी हैं। श्रीराम काज के दीवाने 80 के दशक में अपराधी माने जाते थे। ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वही बनाएंगे’ का नारा बुलंद करने वालों को गोलियां खानी पड़ती थीं। आज श्रीराम की नगरी रोशन है, लेकिन इसके कण कण में बलिदान है कारसेवकों का, त्याग है राम मंदिर के आंदोलनकारियों का, ज़िद है राम मंदिर की, जुनून है रामलला का, दीवानगी है सरयू की, इंतज़ार है हनुमान का। आज टीवी पर टॉप बैंड्स हैं।
यह भी पढ़ेंः-
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.