Breast Tax: Tax had to be paid to cover the breasts, this story of harassment of women will give you goosebumps,स्तन ढकने के लिए टैक्स देना पड़ता था टैक्स, महिलाओं के उत्पीड़न की यह कहानी कर देगी आपके रोंगटे खड़े-Indianews
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Breast Tax: स्तन ढकने के लिए देना पड़ता था टैक्स, यह कहानी कर देगी आपके रोंगटे खड़े-Indianews

Divyanshi Singh • LAST UPDATED : May 16, 2024, 9:57 pm IST
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Breast Tax: स्तन ढकने के लिए देना पड़ता था टैक्स, यह कहानी कर देगी आपके रोंगटे खड़े-Indianews

Nangeli cut off her breasts for breast tax

India News (इंडिया न्यूज),  Breast Tax: भारत में आज जहां लड़कियों को कई बार छोटे कपड़े पहनने के लिए ट्रोल किया जाता है। वहीं लड़कियों के कपड़ों से लोगों की भावनायें भी आहत होती है। भारत में आज भी लोग लड़कियों को उनके कपड़े सो जज करते हैं। वहीं एक  कहानी ऐसी भी है जहां लड़कियों को अपने स्तन ढ़कने की इजाजत नहीं थीं। उनकी ये कहानी इतनी दर्दनाक है कि इसे जान कर आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे।

ब्रेस्ट टैक्स

कहानी की शुरुवात 1729 में हुई जब मद्रास प्रेसीडेंसी में त्रावणकोर साम्राज्य की स्थापना हुई। मार्थंड वर्मा राजा थे । जब उनका साम्राज्य बना तो नए नियम-कानून बने। टैक्स लेने का सिस्टम बनाया गया जैसे आज हाउस टैक्स, सेल टैक्स और जीएसटी। लेकिन सबसे हैरान करने वाला एक टैक्स और बनाया गया जो ब्रेस्ट टैक्स यानी स्तन कर था । ये कर दलित और ओबीसी वर्ग की महिलाओं पर लगाया गया।

टैक्स देने के थे दो नियम

त्रावणकोर में निचली जाति की महिलाएँ केवल कमर तक ही कपड़े पहन सकती थीं। जब भी वह अफसरों और ऊंची जाति के लोगों के सामने से गुजरती थी तो उसे अपना सीना खुला रखना पड़ता था. अगर महिलाएं अपने स्तन ढकना चाहती हैं तो उन्हें बदले में ब्रेस्ट टैक्स देना होता। इसमें भी दो नियम थे। जिनके स्तन छोटे हैं, उन पर टैक्स कम है और जिनके स्तन बड़े हैं, उन पर टैक्स अधिक है। इस कर का नाम मुलक्रम था।

दलित महिलाओं का उत्पीड़न

यह अश्लील प्रथा सिर्फ महिलाओं पर ही नहीं बल्कि पुरुषों पर भी लागू होती थी। उसे अपना सिर ढकने की इजाजत नहीं थी। अगर वे कमर से ऊपर कपड़े पहनना चाहते हैं और सिर उठाकर चलना चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए अलग से टैक्स देना होगा। यह व्यवस्था ऊंची जातियों को छोड़कर सभी पर लागू थी, लेकिन वर्ण व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर होने के कारण निचली जाति की दलित महिलाओं को सबसे अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता था।

चाकुओं से फाड़ देते थे कपड़े

यदि नादर वर्ग की महिलाएँ अपनी छाती को कपड़े से ढँक लें तो सूचना राज पुरोहित तक पहुँच जाती थी। पुजारी के पास एक लंबी छड़ी थी जिसके सिरे पर चाकू बंधा हुआ था। वह उससे ब्लाउज खींचकर फाड़ देता था। वह उस कपड़े को पेड़ों पर लटका देता था। यह संदेश देने का एक तरीका था कि भविष्य में कोई ऐसा करने की हिम्मत नहीं करेगा।

नांगेली

19वीं सदी की शुरुआत में चेरथला में नांगेली नाम की एक स्वाभिमानी और क्रांतिकारी महिला रहती थी। उन्होंने फैसला किया कि वह अपने स्तन ढक कर रखेंगी और टैक्स भी नहीं देंगी। नांगेली का यह कदम सामंती लोगों के मुँह पर तमाचा था। जब अधिकारी घर पहुंचे तो नंगेली के पति चिरकंदुन ने टैक्स देने से इनकार कर दिया। बात राजा तक पहुँची। राजा ने एक बड़ा दल नांगेली भेजा।

नांगेली ने काट दिए स्तन

राजा के आदेश पर अधिकारी कर वसूलने के लिए नांगेली के घर पहुँचे। सारा गाँव एकत्र हो गया। अधिकारी ने कहा, “ब्रेस्ट टैक्स चुकाओ, तुम्हें कोई माफी नहीं मिलेगी।” नंगेली ने कहा, ‘रुको, मैं टैक्स लेकर आती हूं।’ नंगेली अपनी झोपड़ी में चली गई। जब वह बाहर आईं तो लोग दंग रह गए। अफसरों की आंखें फैल गईं। नांगेली अपने कटे हुए स्तन के साथ केले के पत्ते पर खड़ी थी। अधिकारी भाग खड़े हुए। लगातार खून बहने के कारण नांगेली जमीन पर गिर गई और फिर कभी नहीं उठ पाई।

नांगेली की मृत्यु के बाद उसके पति चिरकंदुन ने भी चिता में कूदकर आत्महत्या कर ली। भारतीय इतिहास में किसी पुरुष के सती होने की यह एकमात्र घटना है। इस घटना के बाद विद्रोह हो गया। हिंसा शुरू हो गई। स्त्रियाँ पूरे कपड़े पहनने लगीं। मद्रास कमिश्नर त्रावणकोर राजा के महल पहुंचे। कहा, ”हिंसा रोकने में हम नाकाम साबित हो रहे हैं, कुछ कीजिए।” राजा बैकफुट पर चले गये। उन्हें घोषणा करनी पड़ी कि अब नादर जाति की महिलाएं बिना टैक्स के ऊपरी कपड़े पहन सकेंगी।

रानी ‘एंटींगल’ ने कटवा दिए थे दलित महिला के स्तन

जब नादर जाति की महिलाओं को अपने स्तन ढकने की इजाजत दी गई तो एझावा, शेनार या शनारस और नादर जाति की महिलाओं ने भी विद्रोह कर दिया। उनके विद्रोह को दबाने के लिए ऊँचे घरानों की महिलाएँ भी आगे आईं। ऐसी ही एक कहानी सामने आती है जिसमें रानी ‘एंटींगल’ ने एक दलित महिला के स्तन कटवा दिए थे।

चार्ल्स ट्रेवेलियन ने नियम को किया खत्म

जिन लोगों ने इस कुप्रथा के विरुद्ध विद्रोह किया वे पकड़े जाने के डर से श्रीलंका चले गये। वहां चाय बागानों में काम करना शुरू किया। इस काल में त्रावणकोर में ब्रिटिश हस्तक्षेप बढ़ गया। 1829 में त्रावणकोर के दीवान मुनरो ने कहा, “यदि महिलाएँ ईसाई बन जाती हैं, तो हिंदुओं के ये नियम उन पर लागू नहीं होंगे। वे स्तनों को ढक सकेंगी।”

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मुनरो के इस आदेश से ऊंची जाति के लोग नाराज हो गये, लेकिन अंग्रेज फैसले पर अड़े रहे। 1859 में अंग्रेज गवर्नर चार्ल्स ट्रेवेलियन ने त्रावणकोर में इस नियम को ख़त्म कर दिया। अब हिंसा करने वाले बदल गये हैं। ऊंची जाति के लोगों ने लूटपाट शुरू कर दी। नादर महिलाओं को निशाना बनाया गया और उनके अनाज जला दिये गये। इस दौरान नादर जाति की दो महिलाओं को सार्वजनिक रूप से फाँसी पर लटका दिया गया।

अंग्रेजों के बढ़ते प्रभुत्व से महिलाओं को मिली राहत

अंग्रेज दीवान जर्मनी दास ने अपनी पुस्तक ‘महारानी’ में इस कुप्रथा का उल्लेख करते हुए लिखा है, ”यह संघर्ष काफी समय तक चलता रहा। 1965 में जनता की जीत हुई और सभी को पूरे कपड़े पहनने का अधिकार मिल गया. इस अधिकार के बावजूद कई हिस्सों में दलितों को कपड़े न पहनने देने की कुप्रथा जारी रही. 1924 में यह कलंक पूरी तरह ख़त्म हो गया, क्योंकि उस समय पूरा देश आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़ा था।”

इतिहास से मिटाने का प्रयास

NCRT ने 2019 में कक्षा 9 की इतिहास की किताब से तीन अध्याय हटा दिए। इसमें एक अध्याय त्रावणकोर में निचली जातियों के संघर्ष से संबंधित था। हंगामा मच गया। केरल के सीएम पिनाराई विजयन ने कहा, ”इस विषय को हटाना संघ परिवार के एजेंडे को दर्शाता है।” इससे पहले सीबीएसई ने 2017 में 9वीं सोशल साइंस से भी इस चैप्टर को हटा दिया था। मामला मद्रास हाई कोर्ट तक पहुंच गया था। अदालत ने कहा, ”2017 की परीक्षाओं में अध्याय, जाति, संघर्ष और पोशाक परिवर्तन से कुछ भी नहीं पूछा जाएगा।”

इतिहास हमेशा पुरुषों के नजरिए से लिखा गया

केरल के श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में लिंग पारिस्थितिकी और दलित अध्ययन की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ शीबा केएम कहती हैं, “स्तन कर का उद्देश्य जातिवाद की संरचना को बनाए रखना था।” नांगेली के परपोते मनियान वेलु का कहना है कि मुझे नांगेली परिवार का बच्चा होने पर गर्व है। उन्होंने ये फैसला अपने लिए नहीं बल्कि सभी महिलाओं के लिए लिया। उनके बलिदान के कारण ही राजा को यह कर वापस लेना पड़ा।

डॉ. शीबा कहती हैं कि नांगेली को लेकर जितनी चर्चा होनी चाहिए थी, उतनी नहीं हुई। इसकी वजह बताते हुए उन्होंने कहा, ”इतिहास हमेशा पुरुषों के नजरिए से लिखा गया है। पिछले कुछ दशकों में महिलाओं के बारे में जानकारी जुटाने का सिलसिला शुरू हुआ है। “उम्मीद है कि नांगेली की बहादुरी और बलिदान लोगों तक पहुंचेगा।”

नांगेली ने अपने बलिदान से एक क्रांति पैदा कर दी। उन्होंने एक शर्मनाक कर को ख़त्म करने के लिए अपना जीवन दे दिया। केरल के मुलच्चिपुरम में उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई है। लोग जहां भी जाते हैं सिर झुकाते हैं। लोग दूसरों को भूलने या भुलाने की कोशिश करेंगे, लेकिन नंगेली को नहीं भुलाया जाएगा।

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