India News (इंडिया न्यूज़), Loksabha Election 2024: अपनी रणनीति बनाने में सबसे ज्यादा सावधान, उसे लागू कराने में एक एक सावधानी बरतने और इसके लिए साधनों और कार्यकर्त्ताओं से समृद्ध भाजपा को अगर झारखंड के आपरेशन लोटस में विफलता मिली। चण्डीगढ नगर निगम के चुनाव में मेयर चुनाव अपनाई रणनीति के लिए सुप्रीम कोर्ट से सीधी फटकार मिली तो तय मानिए कि पार्टी अपने ‘दोषियों’ को आसानी से नहीं बख्शेगी। चंडीगढ़ का मामला तो नया है और नए बने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के उत्साह को पंचर करने के लिए लक्ष्मण रेखा तोडी गई लेकिन झारखंड में तो कब से प्रयास चल रहा था। बल्कि कथित भ्रष्टाचार के एक मामले की जांच रिपोर्ट जब पिछले साल आई थी तब भी सरकार बदलने की चर्चा गंभीर हों गई थी और तनातनी इतनी बढ़ी कि राज्यपाल महोदय ने उस रिपोर्ट का लिफाफा ही नहीं खोला। इस बार भी प्रवर्त्तन निदेशालय ने हेमंत सोरेन को नोटिस रांची में दिया और उनकी तलाश का नाटक दिल्ली में चला। इतना ही नहीं हुआ, इडी के मुख्यमंत्री निवास पहुँचने के पहले भाजपा के कार्यकर्त्ता शहर भर में हंगामा मचा चुके थे।
हेमंत सावधान थे और उन्होंने एक मजबूत सहयोगी को अपना विकल्प चुनवा लिया था लेकिन राज्यपाल महोदय ने देर रात होने पर उनका इस्तीफा स्वीकार किया, इडी ने उनको गिरफ्तार किया लेकिन उनके उत्तराधिकारी चंपई सोरेन के दावे को स्वीकार करने में देर करते गए और राज्य चौबीस घंटे से ज्यादा समय तक बिना सरकार और किसी संवैधानिक व्यवस्था के रहा। इस बीच शासक जमात अपने विधायकों को समेटे रहने और राहुल गांधी की झारखंड यात्रा की दोहरी परेशानी झेलता रहा। दूसरी ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के भी बिखरने की अफवाहों से बाजार और मीडिया गरम रहे। जब सरकार बन गई और सदन में बहुमत साबित हो गया तब किसी भी बहादुर भाजपा नेता या प्रवक्ता ने अपनी गलतबयानी के लिए सफाई नहीं पेश की। पर यह बताना भी जरूरी है कि इन दो बड़ी गलतियों के पकड़े जाने और पिटने के बावजूद भाजपा और इडी का अरविन्द केजरीवाल विरोधी अभियान शांत नहीं पड़ा। बल्कि भाजपा के लोगों ने वह और जोर-शोर से चलाया और आप के कार्यकर्त्ताओं के भी सड़क पर उतरने से दिल्ली में ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा गई। अगले दिन आप नेता आतिशी को भी घेरेने की मुहिम शुरू हुई। शोर मचाने और हल्की राजनीति के उस्ताद आप के नेताओं की तरफ से विधायक तोड़ने की कोशिश के आरोप भी लगे।
अब इस लेख का मतलब कहीं से भी हेमंत सोरेन, लालू परिवार, अरविन्द समेत आप के प्रमुख नेताओं, अजित पँवार, नारायण राणे, संजय राऊत, छगन भुजबल जैसे नेताओं को क्लीन चिट देना या उनकी राजनैतिक पैरवी करना नहीं है। उनके खिलाफ या और भी लोगों के खिलाफ जो भी मामले बनाते हैं उनमें जरूर कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन भ्रष्टाचार से लड़ने और काला धन वापस लाने का खेल इस नौटंकी पर ला देने का मतलब सभी दोषियों को अपने पाप धोने का मौका देना ही है। हर ऐसा नेता यही कहता है कि उसके खिलाफ की कार्रवाई राजनैतिक है। और भाजपा में शामिल होते ही सारे दाग धूल जाते हैं। नए ही नहीं मायावती और बंगाल, असम, महाराष्ट्र के पुराने मामलों को जिस तरह गलीचे के नीचे कर दिया गया है वह भी संदेह पैदा करता है। अपराधी को पकड़ने की जगह उसका राजनैतिक इस्तेमाल करने और विरोधियों को दबाए रखने का खेल चलाने के आरोप भी लगते हैं। पर ऐसा कांग्रेसी राज में बसपा और सपा समर्थन पाने के लिए खेल होता था। अब यह चलन बहुत बढ़ा है, पर मामला उतना ही नहीं लगता।
जिस दिन उपरोक्त दो बड़े फैसले भाजपा और उसकी केन्द्रीय सत्ता पर इतनी सख्त टिप्पणी कर रहे थे उसे दिन मौजूदा संसद के सत्र में अपना आखिरी भाषण देते हुए प्रधानमंत्री जो कुछ कह रहे थे, उसमें पछतावा या गलती का उल्लेख तो था ही नहीं। उसमें कांग्रेस पार्टी और उसके नेता राहुल गांधी पर तीखे प्रहार करते हुए भाजपा के 350 और एनडीए के उसके सहयोगियों के पचास सीटें जीतने का दावा किया गया। तीसरा कार्यपाल पाने के प्रति लगभग पूरा आश्वस्त नरेंद्र मोदी ने यह दावा भी किया कि तीसरे कार्यकाल में भारत के अगले एक हजार सालों को दिशा देने वाले काम करेंगे। लगभग ऐसी ही बात उन्होंने राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर कही थी, लेकिन तब की बात का एक अलग प्रसंग था क्योंकि भाजपा और संघ परिवार इस मसलों को हजार साल की ‘गुलामी मिटाने’ के अभियान के तौर चलाते आए थे। संसद में कही बात का मतलब कुछ और होता है और वह भी तब जबकि भाषण राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस पर हुआ हो। अपनी उपलब्धियों की चर्चा तो स्वाभाविक है लेकिन दस साल के आँकड़े एक साथ प्रस्तुत करने और जनगणना से लेकर काफी सारे आँकड़े सामने न आने देने की सच्चाई भी सब जानते हैं। और इस मामले में संभवत: उनसे भी आगे उनकी वित्त मंत्री थीं जिन्होंने अपने अंतरिम बजट भाषण को उपलब्धियों की गिनती में बदल दिया और एक भी ढंग की नई घोषणा नहीं की। असल में वे भी इसी भरोसे से बजट पढती रहीं कि मोदी जी को तीसरा कार्यकाल मिलने ही वाला है।
भाजपा और मोदी आज मजबूत स्थिति में हैं क्योंकि विपक्ष बहुत ही कमजोर है। मोदी जी मजबूती में उनका चौबीसों घंटे और 365 दिन चुनाव पर चौकस रहने का भी हाथ है। भाजपा और संघ परिवार के पास पर्याप्त बड़ी संख्या में कार्यकर्त्ता हैं। लेकिन राम मंदिर के अगले ही दिन कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने और नीतीश के बाद झारखंड सरकार बदलने का अभियान चलाकर या दिल्ली में आप के खिलाफ मुहिम छेड़कर भाजपा ने खुद भी हवा बदली है और मंदिर या 370 की समाप्ति जैसे मुद्दों के लाभकर न रह जाने का संकेत भी दिया है। पर जिस गुमान का इशारा ऊपर किया गया है उसका सबसे बड़ा प्रमाण तो मोदी कैबिनेट द्वारा मंदिर निर्माण की तारीख अर्थात 22 जनवरी 2024 को भारत को ‘आध्यात्मिक आजादी’ मिलने का प्रस्ताव पास करना है। यह गुमान किन-किन चीजों से झलकता है यह गिनवाना बहुत लंबा हों जाएगा। पर इस से यह भी लगता है कि रांची, चंडीगढ़ या फिर दिल्ली का आपरेशन सिर्फ राजनैतिक चूक नहीं है। यह उस गुमान का हिस्सा है।
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