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RJD में सबसे बड़ी बगावत! लालू सही गुरु बनने के लायक नहीं, तेजस्वी की सालगिराह पर शिवानंद तिवारी ने चलाए नसीहत के बाण

Shivanand Tiwari on Tejashwi Yadav Leadership: बिहार के RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के पुराने सहयोगी वरिष्ठ समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी ने राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को शादी की सालगिरह की बधाई देते हुए बड़ी नसीहत देते हुए उनके काम और नेतृत्व पर सवाल उठाया. इस दौरान उन्होंने अपने पुराने सहयोगी लालू प्रसाद यादव पर भी तंज कसा है कि वह तेजस्वी के गुरु बनने के लायक नहीं है. RJD में इस सबसे बड़ी बगावत पर बिहार सरकार के मंत्री मंगल पांडेय ने भी टिप्पणी की है कि पार्टी का अंदरूनी झगड़ा सामने आ रहा है.  ऐसे में चलिए विस्तार से जानें कि शिवानंद तिवारी ने तेजस्वी के लिए क्या लिखा जिससे अब RJD में कलह साफ-साफ दिख रही है.

क्या लिखा था शिवानंद तिवारी ने?

शिवानंद तिवारी ने सोशल मीडिया पर एक बहुत लंबी पोस्ट लिखी है कि 9 दिसंबर मेरा जन्मदिन था. इत्तेफ़ाक से, 9 दिसंबर मेरी प्यारी नातिन शैबा की शादी का दिन भी था और उस दिन ही तेजस्वी यादव की भी शादी हुई. ह एक इंटरफेथ शादी थी. मैंने फ़ोन पर तेजस्वी को बधाई दी और उन्हें बताया कि मैं अपनी नातिनकी शादी में हूं.  मेरा जन्मदिन भी था. इसलिए, मुझे उनका शादी का दिन हमेशा याद रहेगा. कल, जब मैंने फ़ोन पर अपनी पोती और दामाद को बधाई दी, तो मुझे तेजस्वी की शादी याद आई. हालांकि मैं हाल ही में लालू परिवार से थोड़ा दूर हो गया हूं, फिर भी मैंने उन्हें फ़ोन पर बधाई संदेश भेजा. उन्होंने इमोजी के साथ जवाब भी दिया.

तेजस्वी लालू यादव के वारिस और शायद RJD के भी- शिवांनद तिवारी

तेजस्वी लालू यादव के बेटे हैं. वह उनके वारिस हैं. असल में, राष्ट्रीय जनता दल की बागडोर अब तेजस्वी के हाथों में है. पिछले चुनाव में यह ऐलान किया गया था कि अगर महागठबंधन सत्ता में आता है, तो तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री होंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके उलट, उल्टा हुआ. जीतना और हारना किसी भी क्षेत्र में स्वाभाविक और आम नियम हैं। लेकिन सबसे ज़रूरी सवाल यह है कि हम अपनी जीत या हार को कैसे देखते हैं. अगर जीतने वाली पार्टी जीत के बाद घमंड दिखाती है और हारने वाली पार्टी को नीचा दिखाने की कोशिश करती है, तो वह खुद ही अपनी भविष्य की हार की कहानी लिखती है.
इसी तरह, हारने वाली पार्टी के नेता की भूमिका जीतने वाली पार्टी के नेता से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि उस पर अपने साथियों और समर्थकों का मनोबल बनाए रखने की ज़िम्मेदारी होती है. अगर वह हार के बाद मैदान छोड़ देता है, तो वह खुद ही ऐलान करता है कि वह भविष्य में मुकाबला करने के लायक नहीं है. लोकतंत्र में, राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी विचारधाराओं के आधार पर अपने पक्ष में जनमत बनाने की कोशिश करती हैं, चाहे वे ईमानदारी से उस विचारधारा का पालन करें या नहीं. लेकिन संगठन की…” संरचना, अलग-अलग लोगों को दिए गए पद, और आप विधान परिषद, विधानसभा, राज्यसभा या लोकसभा के लिए जिन उम्मीदवारों को नॉमिनेट करते हैं – यह सब जनता को पता होता है. यह सब खुलेआम होता है। लोग इन्हीं बातों के आधार पर आपकी विचारधारा का आकलन करते हैं.

तेजस्वी जिन सिद्धांतों की बात करते है वह राज्यसभा में है?- तिवारी

वे या तो आपकी पार्टी में शामिल होते हैं या उससे दूरी बना लेते हैं। तेजस्वी को देखना चाहिए कि वह जिन सिद्धांतों की बात कर रहे हैं, वे विधान परिषद और राज्यसभा में दिखते हैं या नहीं. क्या समाज के कमजोर वर्गों, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान, को वहां जगह मिल रही है या नहीं? अगर आप उन्हें वहां जगह नहीं दे रहे हैं, तो आप उनके समर्थन की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

लालू यादव तेजस्वी के लिए सही गुरु नहीं- तिवारी

जब तेजस्वी ने पहली बार पार्टी संभाली, तो मैंने उनसे कहा था कि उनके पिता उनके लिए सही गुरु नहीं हो सकते. क्योंकि 1990 के दशक में, मंडल आंदोलन और आडवाणी जी की गिरफ्तारी के बाद, उन्हें अभूतपूर्व जनसमर्थन मिला था। वह राजनीति में हीरो बन गए थे। मैंने खुद उनके साथ देश के कई हिस्सों में यात्रा की और यह सब अपनी आंखों से देखा. लेकिन कितनी जल्दी सब कुछ बिखर गया.
1990 के दशक का हीरो 2010 में सिर्फ 22 सीटों पर सिमट गया. उन्हें विपक्ष का दर्जा भी नहीं मिला. आपने थोड़ा बेहतर किया है. आप विपक्ष के मान्यता प्राप्त नेता हैं. लेकिन नतीजों के बाद आप गायब हो गए. आपको अपने साथियों के साथ बैठना चाहिए था. आपको जमीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठना चाहिए था. आपको उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए था ताकि हार के बाद भी उनका मनोबल कुछ हद तक बना रहे. लेकिन आपने मैदान छोड़ दिया.

समता पार्टी के वक्त हमने हार नहीं मानी- शिवानंद तिवारी

समता पार्टी बनाने में मेरी भूमिका किसी और से कम महत्वपूर्ण नहीं थी. पहले चुनाव में पार्टी सिर्फ सात सीटों पर सिमट गई थी. लेकिन हमने हार नहीं मानी. लेकिन आप दो दिन भी नहीं टिक पाए. उन्होंने अपने साथियों और समर्थकों को निराश किया. संयोग से, अभी RJD राज्य कार्यालय में एक समीक्षा बैठक चल रही है. मंगनी लाल पार्टी कार्यकर्ताओं के आदमी हैं. वह कार्यकर्ताओं की सुनते हैं. कार्यकर्ता उनका सम्मान करते हैं. कार्यकर्ता जगता भाई का सम्मान नहीं करते थे; वे उनसे डरते थे.
वह नेता नहीं, बल्कि बॉस थे.  एक बॉस की तरह, उन्होंने मंत्रियों को वही बताया जो वे सुनना चाहते थे. संजय और जगता भाई, दोनों ने आपको धोखा दिया. उसने दिया. उसने आपको एक अच्छी तस्वीर दिखाई. बदले में, उन दोनों को बहुत फायदा हुआ. आपको उनका काम भी पसंद आया. जब सब कुछ लुट गया, और सच्चाई सामने आई, तो आप उसका सामना नहीं कर पाए. मैं आपको सलाह दूंगा कि तुरंत वापस आ जाएं. बिहार में घूमें. नेता की तरह नहीं, बल्कि पार्टी कार्यकर्ता की तरह. उनसे बॉस की तरह नहीं, बल्कि बराबर वाले की तरह मिलें. तभी आपका भविष्य सुरक्षित होगा. याद रखें, समय किसी का इंतज़ार नहीं करता. आपका शुभचिंतक – शिवानंद.

shristi S

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shristi S

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