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Surajkund Mela 2024: सूरजकुंड मेले में वायरल हो रहा 'पगड़ी बंधाओ – फोटो खिंचाओ' ट्रेंड, जानें क्या है खास

Itvnetwork Team • LAST UPDATED : February 6, 2024, 6:07 pm IST

India News (इंडिया न्यूज), Surajkund Mela 2024: पगड़ी बंधवाने और ‘हुक्का सेल्फी’ लेने के लिए दिनभर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। हरियाणा के ‘विरासत’ की ओर से लगाई गई सांस्कृतिक प्रदर्शनी पर ‘पगड़ी बंधाओ – फोटो खिंचाओ’ में हरियाणवी पगड़ी बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों तक सभी को अपनी ओर लगातार आकर्षित कर रही है।

हरियाण की संस्कृति खूब हो रही लोकप्रिय

इस विषय में विस्तार से जानकारी देते हुए ‘विरासत’ के निदेशक डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि हरियाणा की पगड़ी को अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में खूब लोकप्रियता प्राप्त हो रही है। पर्यटक पगड़ी बांधकर हुक्के के साथ सेल्फी, हरियाणवी झरोखे, हरियाणवी दरवाजों, आपणा घर के दरवाजों के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर अपलोड कर रहे हैं। इससे हरियाणा की लोक सांस्कृतिक ‘विरासत’ खूब लोकप्रिय हो रही है। डॉ. पूनिया ने बताया कि मेले के दूसरे दिन भारत के उपराष्ट्रपति महामहिम श्री जगदीप धनखड़ की धर्मपत्नी श्रीमती सुदेश धनखड़ भी मेला अवलोकन के दौरान हरियाणवी पगड़ी बंधवा चुकी हैं। उन्होंने कहा कि लोकजीवन में पगड़ी की विशेष महत्वता है।

इस परिधान को मिला सर्वोच्च स्थान 

पगड़ी की परंपरा का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। जहां एक ओर लोक सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ी हुई है, वहीं पर सामाजिक सरोकारों से भी इसका गहरा संबंध है। हरियाणा के खादर, बांगर, बागड़, अहीरवाल, बृज, मेवात, कौरवी समेत सभी क्षेत्रों में पगड़ी की विविधता देखने को मिलती है। पुराने समय में सिर को सुरक्षित रखने के लिए पगड़ी का प्रयोग किया जाता रहा है। इस परिधान को सभी परिधानों में सर्वोच्च स्थान मिला है।

पगड़ी को लोक जीवन में पग, पाग, पग्गड़, पगड़ी, पगमंडासा, साफा, पेचा, फेंटा, खण्डवा, खण्डका, आदि नामों से भी जाना जाता है, जबकि साहित्य में पगड़ी को रूमालियो, परणा, शीशकाय, जालक, मुरैठा, मुकुट, कनटोपा, मदील, मोलिया और चिंदी आदि नामों से जाना जाता है। वास्तव में पगड़ी का काम शरीर के ऊपरी भाग (सिर) को सर्दी, गर्मी, धूप, लू, वर्षा आदि आपदाओं से सुरक्षित रखना रहा है। धीरे – धीरे इसे सामाजिक मान्यता के माध्यम से मान और सम्मान के प्रतीक के साथ जोड़ दिया गया, क्योंकि पगड़ी शिरोधार्य है। यदि पगड़ी के इतिहास में झांक कर देखें, तो अनादिकाल से ही पगड़ी को धारण करने की परम्परा रही है। फिलहाल मेला परिसर में ‘आपणा घर’ में सजी ‘विरासत’ प्रदर्शनी हर पर्यटक को हरियाणवी संस्कृति का संदेश दे रही है।

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