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Amit Shah said in a rally in Siliguri
इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून यानी सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (CAA) एक बार फिर चर्चा है। गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान ने इसे एक बार फिर से चर्चा में ला दिया है। अमित शाह ने पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में एक रैली में कहा कि कोरोना महामारी खत्म होते ही सीएए को लागू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि CAA वास्तविकता था, है और हमेशा रहेगा।
लेकिन, नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए तो दिसंबर 2019 में संसद के दोनों सदनों से पास हो गया था। राष्ट्रपति ने भी इसे मंजूरी दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस कानून के अमल पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, तो फिर अमित शाह सीएए को लागू करने की बात क्यों कह रहे हैं?
शाह के बयान का ये है मतलब
दरअसल, होता ये है कि जब भी कोई कानून बनता है तो उसके कुछ नियम-कायदे होते हैं। नागरिकता संशोधन कानून 10 जनवरी 2020 से लागू हो गया है, लेकिन अभी तक इसके नियम-कायदे तय नहीं हुए हैं, इसलिए ये पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया है।
आमतौर पर कोई भी कानून बनने के बाद 6 महीने के भीतर उसके नियम बनाने होते हैं। अगर ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उसके लिए संसद से समय मांगना पड़ता है, जो एक बार में तीन महीने से ज्यादा नहीं होता है।
सीएए को लागू हुए दो साल से ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन इसके नियम अभी तक नहीं बने हैं। गृह मंत्रालय कई बार सीएए के नियम बनाने के लिए समय मांग चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक 6 बार इसका समय बढ़ाया जा चुका है।
सरकार ने आखिरी बार 9 जनवरी 2022 तक का समय मांगा था। हालांकि, नियम नहीं बनने के बाद फिर से समय मांगा गया है। बताया जा रहा है कि अब अक्टूबर तक का समय मांगा गया है।
चूंकि अब तक इस कानून के नियम नहीं बने हैं, इसलिए इस कानून के जरिए जिन लोगों को नागरिकता मिलनी है, वो आवेदन नहीं कर सकते। नियम बनने के बाद नागरिकता के लिए आवेदन किया जा सकता है।
नागरिकता संशोधन बिल पहली बार 2016 में लोकसभा में पेश किया था। यहां से तो ये पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में अटक गया। इसके बाद में इसे संसदीय समिति के पास भेजा गया और फिर चुनाव आ गए।
दोबारा चुनाव के बाद नई सरकार बनी, इसलिए दिसंबर 2019 में इसे लोकसभा में फिर पेश किया गया। इस बार ये बिल लोकसभा और राज्यसभा, दोनों जगह से पास हो गया। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद 10 जनवरी 2020 से ये लागू हो गया है।
नागरिकता संशोधन कानून के जरिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म से जुड़े शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगा। कानून के मुताबिक, जो लोग 31 दिसंबर 2014 से पहले आकर भारत में बस गए थे, उन्हें ही नागरिकता दी जाएगी।
लेकिन यही क्यों, मुस्लिमों को क्यों नहीं?
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की सबसे बड़ी वजह यही है। विरोध करने वाले इस कानून को एंटी-मुस्लिम बताते हैं। उनका कहना है कि जब नागरिकता देनी है तो उसे धर्म के आधार पर क्यों दिया जा रहा है? इसमें मुस्लिमों को शामिल क्यों नहीं किया जा रहा?
इस पर सरकार का तर्क है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान इस्लामिक देश हैं और यहां पर गैर-मुस्लिमों को धर्म के आधार पर सताया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है। इसी कारण गैर-मुस्लिम यहां से भागकर भारत आए हैं। इसलिए गैर-मुस्लिमों को ही इसमें शामिल किया गया है।
कानूनन भारत की नागरिकता के लिए कम से कम 11 साल तक देश में रहना जरूरी है, लेकिन, नागरिकता संशोधन कानून में इन तीन देशों के गैर-मुस्लिमों को 11 साल की बजाय 6 साल रहने पर ही नागरिकता दे दी जाएगी। बाकी दूसरे देशों के लोगों को 11 साल का वक्त भारत में गुजारना होगा, भले ही फिर वो किसी भी धर्म के हों।
…तो कितने लोगों को मिलेगी नागरिकता?
जनवरी 2019 में संयुक्त संसदीय समिति ने इस बिल पर अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इस समिति के अध्यक्ष बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल थे। इस समिति में आईबी और रॉ के अधिकारियों को भी शामिल किया गया था।
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