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‘राहुल’ को ‘राहुल’ से निकलना होगा?

Sailesh Chandra • LAST UPDATED : August 9, 2023, 12:05 pm IST

India News (इंडिया न्यूज़), दिल्ली: राहुल गांधी एक बार फिर लोकसभा सांसद हैं। कांग्रेस के मन में लड्डू फूटे, इतने फूटे कि अधीर रंजन चौधरी ने मल्लिकार्जुन खड़गे के मुंह में बड़ा सा लड्डू ठूस दिया। कांग्रेस राजनीतिक रिवाइवल के लॉन्चपैड की तलाश में है, राहुल की सदस्यता बहाली उसे संजीवनी लगती है। क्या वाक़ई कांग्रेस की बहार लौट आई है या ये सावन की वो हरियाली जिसमें सब हरा-हरा ही दिखता है। 137 दिन बाद राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाल हुई। मोदी सरनेम मानहानि केस में राहुल गांधी को 23 मार्च को निचली अदालत ने 2 साल की सज़ा सुनाई, जिसके 24 घंटे में ही 24 मार्च को सांसदी चली गई थी। राहुल गांधी की सदस्यता बहाली से कांग्रेस और 26 विपक्षी दलों के I.N.D.I.A. गठबंधन को अतिउत्साह का शिकार नहीं होना चाहिए। ‘मुहब्बत की दुकान’ नैरेटिव हो सकता है, चुनाव जीतने की गारंटी नहीं।

याद कीजिए लोकसभा चुनाव 2019 में राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी को शर्मनाक हार झेलनी पड़ी थी। 2014 के चुनाव में 44 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को 2019 में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन उम्मीद पूरी नहीं हो सकी और कांग्रेस मात्र 52 सीटों पर ही सिमट कर रह गई। राहुल गांधी को गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान 16 दिसंबर 2017 को कांग्रेस पार्टी की कमान सौंपी गई थी। राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष रहते देश में 14 राज्यों में विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव हुए। 14 राज्यों में से कांग्रेस सिर्फ चार राज्यों में ही अपनी सरकार बना पाई। ये राज्य कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान रहे। कोढ़ में खाज ये कि लोकसभा चुनाव 2019 में ख़राब प्रदर्शन के साथ-साथ राहुल गांधी अपनी ख़ानदानी सीट अमेठी भी गवां बैठे, हालांकि राहुल ने केरल की वायनाड सीट पर रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की।

थोड़ा और पीछे लिए चलते हैं, लगभग 5 साल के लिए राहुल गांधी कांग्रेस के उपाध्यक्ष भी रहे। राहुल गांधी को 2013 में कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया था। ये वो समय था जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी और देश के कई राज्यों में कांग्रेस सत्ता में थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस 2004 के मुकाबले और ज्यादा मजबूत होकर सामने आई तो उसका ज्यादातर श्रेय राहुल गांधी को ही दिया गया। लेकिन राहुल गांधी का फेल्योर रिपोर्ट कार्ड बताता है कि उपाध्यक्ष रहते पांच साल में 24 चुनाव हार गए थे। उस ज़माने में राहुल गांधी ना तो जनता के सामने कोई विजन पेश कर सके और न ही कांग्रेस के ऊपर लगे गंभीर आरोपों का बचाव कर पाए।

इतिहास से निकल कर अब वर्तमान की बात। राहुल गांधी वापस लोकसभा पहुंच चुके हैं। कांग्रेस के साथ-साथ 26 विपक्षी दलों का गठबंधन I.N.D.I.A. भी उत्साह से लबरेज़ है। राहुल गांधी ने 136 दिन तक 14 राज्य में भारत जोड़ो यात्रा की, अब इसका सीक्वेल भी आने वाला है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये कि लीडरशिप में करिश्मा और रणनीति में नयापन कैसे ले आएंगे राहुल गांधी ? 2024 का चुनाव NDA बनाम I.N.D.I.A. का है, मोदी बनाम ऑल का है, तथाकथित सेक्युलर बनाम तथाकथित कम्युनल का है। राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती ख़ुद कांग्रेस का बिखराव है। बिखराव समेट भी लिया तो कांग्रेस में दिग्विजय सिंह, मणिशंकर अय्यर, सैम पित्रोदा, सलमान खुर्शीद जैसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है जिनके बारे में आम धारणा बन गई है कि ये सभी बीजेपी के लिए बीजेपी नेताओं से भी ज्यादा मेहनत करते हैं। इन चुनौतियों से पार पा भी गए तो सामने ममता, पवार, केजरीवाल, अखिलेश जैसे क्षेत्रीय दिग्गजों की महत्वाकांक्षा है। 1885 में बनी कांग्रेस पार्टी 138 साल की हो गई है, लेकिन इतनी कमज़ोर कभी नहीं रही जितनी आज है। राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी के मुक़ाबिल मानना बेईमानी है, लेकिन कांग्रेस बार-बार देश का चुनावी नैरेटिव मोदी बनाम राहुल बनाने की कोशिश में हैं। ख़ैर राहुल गांधी के लिए पनघट की डगर मुश्किल है, चुनावी वैतरणी पार करने के लिए राहुल गांधी को राहुल गांधी की ही पुरानी छवि से निकलना होगा।

(लेखक राशिद हाशमी इंडिया न्यूज़ चैनल के कार्यकारी संपादक हैं)

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