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पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के Logo में सांप को क्यों चबा रहा है बकरा, जानें इसकी दिलचस्प वजह

India News (इंडिया न्यूज़), Story Behind ISI Logo: भारत की रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेस इंटेलिजेंस (ISI) के बीच काबिलियत को लेकर हमेशा चर्चा बनी रहती है। लेकिन एक बात साफ है कि भारत की एजेंसी RAW हमेशा देश के बचाव में काम करती है और ISI भारत […]

BY: Mudit Goswami • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज़), Story Behind ISI Logo: भारत की रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेस इंटेलिजेंस (ISI) के बीच काबिलियत को लेकर हमेशा चर्चा बनी रहती है। लेकिन एक बात साफ है कि भारत की एजेंसी RAW हमेशा देश के बचाव में काम करती है और ISI भारत के खिलाफ आतंकी हमले की साजिश और रणनीति पर काम करती है। आज दुनिया में ISI को सबसे मक्कार और कुख्यात एजेंसी माना जाता है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के डेवलप होने से लेकर इसके लोगो (Logo) तक की एक अजीबो- गरीब कहानी है।

  • भारत से मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान ने बिल्ड की ISI 
  • ऑस्‍ट्रलिया के मूल के सैनिक ने बनाई थी खुफिया एजेंसी
  • लोगो में मौजूद मारखोर बकरा है खास

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेस इंटेलिजेंस यानि ISI को ऑस्‍ट्रलिया मूल के ब्रिटिश आर्मी ऑफिसर मेजर जनरल आर. कैथोम ने साल 1948 में बिल्ड किया था। उस वक्त आर. कैथोम पाकिस्‍तानी आर्मी स्‍टाफ के मुखिया थे। इसके पहले भी पाकिस्तान में दो गुप्‍तचर एजेंसियां इंटेलिजेंस ब्‍यूरो और मिलिट्री इंटेलिजेंस थी।

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Story Behind ISI Logo

साल 1947 में भारत और पाकिस्‍तान के बीच युद्ध के दौरान पाकिस्‍तान की ये दोनो इंटेलिजेंस एजेंसियां अपनी नौसेना, वायुसेना और थलसेना के बीच सूचनाओं को पहुंचाने में पूरी तरह से फेल हो गया थी। जिसके बाद जरूरत महसूस करते हुए नई एजेंसी ISI को बिल्ड किया गया।

पाकिस्तानी एजेंसी का लोगो

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के लोगो (Logo) को काफी सोच-समझ के साथ बनाया गया है। इसे ध्यान से देखने पर पता चलता है कि इसमें एक बकरा सांप चबा रहा है। दरअसल, ISI के इस लोगो के कई मायनें हैं। लोगो में मौजूद बकरा एक खास किस्म की पहाड़ी जंगलों में पाया जाने वाली प्रजाती है।

इसे ‘मारखोर’ कहा जाता है। ये प्रजाती को गुलाम कश्‍मीर में गिलगित-बाल्टिस्‍तान, कलश घाटी, हुनजा घाटी और नीलम घाटी के ऊपरी इलाकों में पाई जाती है। इसके अलावा ये भारत और ताजिकिस्तान के कुछ हिस्सों में भी ये देखने को मिलते हैं। हालांकि बकरे की ये प्रजाती धिरे- धिरे लुप्त हो रही है।

पाकिस्‍तान का राष्‍ट्रीय पशु है मारखोर

मारखोर पाकिस्तान का राष्ट्रीय पशु भी है, शायद इसीलिए इसे ISI ने आपने लोगो में जगह दी गई है। मारखोर प्रजाती के बकरे की ऊंचाई 45 इंच तक होती है और उसकी लंबाई 73 इंच तक रहती है। वजन में ये बकरा 110 किग्रा तक होता है। सीधे पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाने वाली ये प्रजाती 2,000 से 11,800 फीट की ऊंचाई वाले इलाकों में होती है।

मारखोर की खासियत है कि वो सीधी और ऊंची पाहाड़ियों पर आराम से चढ़ जाता है। इनके अलावा इसके ऊपर की ओर फैले हुए कॉर्क स्क्रू की तरह यानी घूमे हुए सींग होते हैं। वहीं मारखोर जहरीली सांपों को आसानी से मारकर चबा जाता है। इसीलिए, लोगो में मारखोर को सांप चबाते हुए दिखाया गया है।

क्या है मारखोर की खासियत

ISI के लोगो में दिखाया गया मारखोर पूरी तरह से अलग रहकर अपना काम करता है। मारखोर का अन्य जानवरों के मुकाबले जीवन को लेकर अलग दृष्टिकोण हैं। ये जानवर अपनी पुरानी शर्तों के हिसाब से डिसिजन लेता है और ये सामने वाले को देखकर क्रूर और कट्टरपंथी हो जाता है।

कहा जाता है कि मारखोर को मौत मंजूर है, लेकिन घर और परिवार से किसी तरह का समझौता मंजूरी नहीं है। मारखोर की ही तरह ये ISI भी बदले हुए वातावरण के अनुकूल खुद को नहीं ढालती है। ये एजेंसर अपने देश और राजनीतिक हितों के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहती है।

लोगो में मारखोर के क्‍या हैं मायने?

मारखोर को दो कारणों की वजह से खुफिया एजेंसी के लोगो में शामिल किया गया है। एक तो ये पाकिस्‍तान का राष्ट्रीय पशु है। और दूसरा ये है कि ये जहरीले से जहरीले सांप को चबाकर खा जाता है। पाकिस्‍तान के लोग कि माने तो लोगो में शामिल मारखोर का मतलब है कि ISI पाकिस्तानी और मुस्लिम होने की आड़ में छुपे पाकिस्तान के आस्‍तीन के सांपों को पकड़कर जड़ से मिटा देती है।

पाकिस्तानियों का मानना है कि ऐसे लोग जब भी मारखोर यानी आईएसआई को देखते हैं, तो उनका दिल डर के मारे धड़कना बंद कर देता है। ISI के इस लोगो के बारे में कुछ लोगों का मानना है कि लोगो में सांप चबती हुई मेंडेस की बकरी है, जिसे बैफोमेट के नाम से भी जाना जाता है। ये एक खास प्रतीक है, जो कई सदियों से इलुमिनाटी और दूसरी सीक्रेट सोसायटीज से जुड़ा हुआ है।

ऐसे बनी ISI मजबूत

ISI  80 के दशक तक दुनिया की कमजोर खुफिया एजेंसी मानी जाती थी। भारत में हुए कई हमलों में इसी एजेंसी का हाथ रहा था। साल 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान ये एजेंसी पूरी तरह फेल हो गई और पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। इसके बाद इसे नए सिरे से खड़ा किया गया। ISI  को अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए (CIA) ने ट्रेनिंग दी और इसे आतंकी नेटवर्क बनाकर साजिश रचने का काम सिखाया।

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