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India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: जिसका डर था।आखिरकार वही हुआ।सेनापति राहुल गांधी ने अपनी परंपरागत सीट अमेठी से मैदान छोड़ अपने को रायबरेली शिफ्ट कर दिया।राजनीतिक पंडित अब अपने हिसाब से इसके विश्लेषण में जुट गए हैं।इस फैसले पर हैरानी तो जताई ही जा रही है,लेकिन कांग्रेस और राहुल को लेकर कुछ भी अच्छा नहीं बोला जा रहा है।कांग्रेस के रायबरेली और अमेठी को लेकर किए गए फैसले ने नई बहस छेड़ दी है।कांग्रेस का यह आत्मघाती फैसला माना जा रहा है। बे मतलब विपक्ष को हमले का मौका दे दिया।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुरंत हमला बोला कि राहुल अमेठी से हार की डर से रायबरेली भाग गए,लेकिन वहां भी नहीं जीतेंगे। इस बार वायनाड भी हार रहे हैं।सोनिया गांधी हार के डर से पहले ही राजस्थान से राज्यसभा चली गई थी।साफ है कि बीजेपी को बड़ा मुद्दा हाथ लग गया।
इस फैसले ने गांधी परिवार को लेकर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।कई तरह की बातें हो रही हैं।भाई बहन में तनातनी की खबरों पर यह फैसला मोहर लगाता दिख रहा है।वो इसलिए कि जिस तरह से रायबरेली और अमेठी के लिए तमाशा किया गया उसको लेकर कई चर्चाएं हैं।पहली तो यही है कि राहुल गांधी इच्छा के विरुद्ध उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ने जा रहे हैं।इसलिए देरी हुई।दूसरा बहन प्रियंका गांधी चुनाव लड़ना चाहती थी,लेकिन परिवार ने वीटो लगा उनकी इच्छा को दबा दिया।
कांग्रेस की सर्वोच्च नेता सोनिया गांधी ने जब इस साल राजस्थान से राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल किया था तो तब भी खबरें आई थी कि प्रियंका की पहली पसंद राज्यसभा थी,लेकिन मां के चलते वह चुप हो गई।फिर उनको पूरी उम्मीद थी कि रायबरेली से उनको मौका मिल जायेगा।लेकिन चुनाव की घोषणा के होते ही मामला क्यों फंसा इसको लेकर जितनी मुंह उतनी बातें हो रही हैं।इसी बीच उनके पति राबर्ट वाड्रा की दावेदारी ने भी चौंकाया।
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जानकार भी मानते हैं वाड्रा ने यूं ही अमेठी से दावा नहीं किया।परिवार में कुछ ना कुछ जरूर हुआ होगा।चर्चा है कि 28 अप्रैल की रात बात कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई।सच कितना है कह नहीं सकते,लेकिन मीडिया में पहले से ही खबरें छप रही थी राहुल प्रियंका को उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ाने के मूड में नहीं है।क्योंकि प्रियंका रायबरेली से लड़ती और जीत जाती तो पार्टी में वह और ताकतवर हो जाती। ऐसे में राहुल अमेठी से हार थे तो पार्टी की फजीहत होती।राहुल की अगर चलती तो वह दोनों सीट पर गैर गांधी चेहरा होता। क्योंकि कि केरल की राजनीति इस बार पूरी तरह से बदल गई।
भाजपा दो सीट पर टक्कर में है, वे हैं त्रिशूर और तिरुवनतपुरम।वामदल को आभास हो गया बीजेपी ने अगर एक सीट पर भी जीत हासिल की तो फिर त्रिपुरा की तरह हालात बदल सकते हैं। इसलिए अब वामदल इसी कोशिश में हैं कि कांग्रेस को केरल में कमजोर किया जाए।इस बार चुनाव में राहुल और कांग्रेस पर उन्होंने जमकर हमला किया।कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत मुस्लिम लीग को भी उकसाया।कांग्रेस ने राज्यसभा की एक सीट दे किसी तरह से उन्हें लोकसभा चुनाव में राजी किया।कांग्रेस इस बार अगर केंद्र में हारती है तो मुस्लिम लीग हर हाल में वामदल वाले गुट में शामिल हो सकता है।आने वाले विधानसभा चुनाव में वह यह फैसला कर सकता है।मुस्लिम लीग के अलग होने का सीधा मतलब कांग्रेस केरल में भी बहुत कमजोर हो जायेगी।वामदलों की एक मात्र सरकार केरल में ही बची हुई है।
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केरल में अप्रैल 2026 में विधानसभा का चुनाव होना है।2021 के चुनाव में कांग्रेस वहां पर सत्ता में वापसी नहीं कर पाई और वामदलों ने आजादी के बाद पहली बार सरकार रिपीट कराने में सफलता पाई।इन हालात में वामदल दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति अभी से बना रहे हैं।उनकी एक ही रणनीति है अपने को जिंदा रखने के लिए कांग्रेस को कमजोर करो।मुस्लिम लीग का संकट यह है कि कांग्रेस केंद्र और राज्य में कमजोर होगी तो वह सत्ता के लिए वामदलों के साथ चले जायेंगे।
राहुल गांधी और उनके सलाहकार के सी वेणुगोपाल जानते हैं अगर रायबरेली में जीत होगी तो वायनाड छोड़ना पड़ेगा।राहुल अगर वायनाड छोड़ेंगे तो केरल में कांग्रेस के लिए अच्छा संदेश नहीं होगा।इसलिए राहुल इस बार उत्तर प्रदेश से खुद चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे और ना ही बहन प्रियंका और जीजा वाड्रा के पक्ष में थे। ऐसा सूत्र कहते हैं।राहुल के चुनाव न लड़ने के फैसले से पूरी पार्टी सकते में थी। सूत्र बताते हैं इसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सोनिया गांधी से अपील की कि राहुल के न लड़ने से गलत मैसेज जायेगा। इसके बाद सोनिया और खरगे ने राहुल पर दबाव बनाया तब जाकर 2 मई की रात राहुल तैयार हुए,लेकिन साथ ही वाड्रा को अमेठी से न लड़ाने का फैसला भी किया गया।
प्रियंका चाहती थी उन्हे अगर टिकट नहीं दिया जा रहा है तो वाड्रा को दे दिया जाए,लेकिन उस पर भी परिवार में सहमति नहीं बनी।हालांकि पार्टी का बड़ा धड़ा उम्मीद कर रहा था कि परिवार में एका हो जायेगा और वरुण गांधी को अमेठी से पार्टी टिकट दे देशभर में माहौल बना लेगी।लेकिन गांधी परिवार ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर ऐसा फैसला किया जिसने पार्टी को मुसीबत में डाल दिया।एक तो सीधा संदेश चला गया राहुल अमेठी से चुनाव लड़ने से डर गए।दूसरा किशोरी लाल शर्मा को टिकट दे पार्टी ने स्मृति ईरानी को वाक ओवर दे दिया। विपक्ष इसे जमकर मुद्दा बनाएगा।
इंडी गठबंधन में निराशा होगी।राहुल के खिलाफ बीजेपी ने योगी सरकार के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को फिर से मैदान में उतारा है।ये वही डी पी सिंह हैं जिन्होंने पिछले चुनाव में सोनिया गांधी को कड़ी टक्कर दी थी।पांच साल से अमेठी में सक्रिय है।इसलिए इस बार भी गांधी परिवार को जीतने के लिए पूरी ताकत लगानी होगी।अब यह देखना होगा कि रायबरेली और अमेठी के लिए कांग्रेस की क्या चुनाव रणनीति रहती है।प्रियंका और राहुल कितना समय देते हैं।हालांकि नामांकन दाखिल करने के समय सोनिया गांधी,राहुल गांधी,प्रियंका गांधी,संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल,राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत तमाम वरिष्ठ नेता मौजूद थे।प्रियंका गांधी भाषण दे कार्यकर्ताओं का हौंसला भी बढ़ाया।काफी सक्रिय दिखाई दी।संदेश देने की कोशिश की गई सब आल इज वेल है।4 जून के परिणाम ही बताएंगे कितना फेसला कितना ठीक था।
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