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India News(इंडिया न्यूज), Voting Percentage in India: स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले तमाम स्वतंत्रता सेनानियों की लंबी लड़ाई और संघर्ष के बाद, 15 अगस्त 1947 को हमें आखिरकार आजादी मिल गई। लेकिन यह सिर्फ एक शुरुआत थी। देश के निर्माण के लिए एक नई यात्रा शुरू हुई, जिसमें हमने लोकतंत्र की नींव रखी गई।
1950 में भारतीय निर्वाचन आयोग की स्थापना ने इस यात्रा को एक नई दिशा दी। भारत के पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) के रूप में सुकुमार सेन को नियुक्त किया गया था। जो एक आईसीएस अधिकारी थे और पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव के रूप में भी कार्यरत रहे।
जब पहली बार 1952 में आम चुनाव हुए, तो परिदृश्य बिलकुल अलग था। देश की लगभग 84% आबादी निरक्षर थी। फिर भी, लगभग 17 करोड़ मतदाताओं में से 10.6 करोड़ लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। जिससे मतदान प्रतिशत लगभग 45% रहा। यह एक उल्लेखनीय शुरुआत थी, खासकर उस दौर की चुनौतियों को देखते हुए।
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1962 में, मतदाताओं की संख्या बढ़कर लगभग 22 करोड़ हो गई और करीब 12 करोड़ लोगों ने मतदान किया। मतदान प्रतिशत भी बढ़कर 55% के करीब पहुंच गया। शुरुआती चुनौतियों के बावजूद, देश की चुनावी प्रक्रिया लगातार मजबूत होती गई। मतदान प्रतिशत में 10% से अधिक की वृद्धि दर्शाती है कि देशवासी धीरे-धीरे लोकतांत्रिक मूल्यों को समझने लगे थे।
1971 में देश के मतदाताओं की संख्या बढ़कर लगभग 27 करोड़ हुई और मतदान प्रतिशत भी 55% से ऊपर रहा। हालांकि, वास्तविक मतदाताओं की संख्या मात्र 15 करोड़ रही ।
लेकिन 1977 में, देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने में एक नया जोश देखने को मिला। इस बार, कुल 32 करोड़ से अधिक मतदाताओं में से लगभग 19 करोड़ लोगों ने मतदान किया। मतदान प्रतिशत 60% से ऊपर रहा। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता था कि जनता अपनी आवाज को अपने वोट के अधिकार से बुलंद करना चाहती थी।
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1980 के दशक में यह प्रवृत्ति और तेज हुई। 1984 के चुनाव में, लगभग 38 करोड़ मतदाताओं में से करीब 24 करोड़ लोगों ने मतदान किया, जिससे मतदान प्रतिशत 64% से अधिक रहा।
हालांकि, 1990 की शुरुआत में एक नई चुनौती सामने आई। भले ही मतदाताओं की संख्या बढ़कर लगभग 50 करोड़ हो गई थी, लेकिन सिर्फ 31 करोड़ लोगों ने ही मतदान किया। मतदान प्रतिशत 57% के आसपास ही रहा। इससे संकेत मिलता है कि मतदाताओं की बढ़ती संख्या के साथ मतदान भागीदारी भी बढ़ाना एक बड़ी चुनौती थी।
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लेकिन भारत ने इस चुनौती का सामना किया। 1998 तक, मतदाताओं की संख्या बढ़कर लगभग 61 करोड़ हो गई थी और मतदान प्रतिशत वापस 62% के आसपास आ गया था। 1999 के चुनाव में, 62 करोड़ मतदाताओं में से करीब 34 करोड़ लोगों ने मतदान किया।
नई सदी के साथ, मतदान भागीदारी में एक नया उछाल देखने को मिला। 2004 के चुनाव में, लगभग 67 करोड़ मतदाताओं में से करीब 39 करोड़ लोगों ने मतदान किया। यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। आगे चलकर भी यह रुझान बना रहा।
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2009 में, रिकॉर्ड 72 करोड़ मतदाताओं में से करीब 42 करोड़ लोगों ने मतदान किया। लेकिन 2014 के चुनाव ने एक नया ऐतिहासिक आंकड़ा दर्ज हुआ। 83 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 55 करोड़ लोगों ने मतदान किया, जिससे मतदान प्रतिशत 66% से अधिक हो गया।
आजादी के बाद से मतदाताओं की संख्या और साक्षरता दर में लगभग 500% की वृद्धि हुई है। लेकिन फिर भी, 2014 के 16वें लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत में केवल लगभग 50% की वृद्धि हुई। पिछले 16 आम चुनावों में से, दस बार मतदान प्रतिशत 60% से कम रहा और छह बार 60% से अधिक रहा। भारत निर्वाचन आयोग के लगातार प्रयासों से 2014 में मतदान प्रतिशत लगभग 66% रहा, जो आजादी के बाद सर्वाधिक था। हालांकि यह आंकड़ा अभी भी कम है, लेकिन कुछ समुदायों में मतदाताओं की रुचि कम होने के मद्देनजर, यह फिर भी बेहतर है।
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इस बढ़ती मतदान भागीदारी के पीछे एक महत्वपूर्ण कारक था – शिक्षा। आजादी के समय, भारत की साक्षरता दर मात्र लगभग 16% थी। लेकिन धीरे-धीरे, यह बढ़ती गई। 1991 तक, यह 52% तक पहुंच गई थी और महिला साक्षरता दर भी 39% हो गई थी। शिक्षित लोग अपने मताधिकार के महत्व को समझने लगे और इसलिए वे मतदान करते थे।
महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी भी बढ़ी। 1999 में केवल 284 महिला उम्मीदवार थीं यह संख्या 2019 में बढ़कर 726 हो गई। निर्वाचित महिला सांसदों की संख्या भी 1999 के 49 से बढ़कर 2019 में 78 हो गई। यह एक स्वागतयोग्य बदलाव था जिससे भारतीय समाज में महिलाओं को राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहन मिल रहा था।
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2011 तक, भारत की कुल साक्षरता दर 73% तक पहुंच गई थी, जिसमें महिला साक्षरता दर 65% थी। इसका सीधा असर मतदान भागीदारी पर पड़ा। साक्षर लोग अपने आसपास के मुद्दों को बेहतर समझने लगे थे और अपनी आवाज़ उठाने लगे थे। उन्हें अहसास हो गया था कि उनकी एक-एक वोट कितनी अहम है।
इसलिए, आने वाले 2024 के चुनाव में रिकॉर्ड मतदान की उम्मीद है। पिछले चुनावों की तुलना में इस बार और ज्यादा लोग जागरूक मतदाता बनेंगे। वे अपने मताधिकार का इस्तेमाल करके यह सुनिश्चित करना चाहेंगे कि उनकी आवाज़ सुनी जाए और चुनी हुई सरकार उनके हितों के लिए काम करे।
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हालांकि, अभी भी कुछ चुनौतियां बाकी हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर अभी भी कम है और कई लोग यह नहीं समझते कि उनका वोट वास्तव में फर्क डाल सकता है। लेकिन हम आशा करते हैं कि समय के साथ ये बाधाएं भी दूर हो जाएंगी।
भारत में बढ़ता मतदान प्रतिशत एक सकारात्मक बदलाव है। यह इंगित करता है कि भारतीय नागरिक अपनी लोकतांत्रिक जिम्मेदारियों के प्रति अधिक जागरूक हो रहे हैं। शिक्षा, जागरूकता और राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि के साथ, भविष्य में मतदान प्रतिशत में और अधिक बढ़ोतरी की उम्मीद है।
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