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इंडिया न्यूज, काबुल:2 दशक तक राज करने के बाद अफगान धरती से जैसे ही अमेरिका सेना ने वापसी की, चीन ने विस्तारवादी नीतियों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगान में इकोनॉमी धवस्त हो चुकी है। गरीब से लड़ रहे देश की मदद के लिए चीन ने अपना पुराना हथकंडा अपनाना शुरू कर दिया है। शी जिनपिंग सरकार अफगानिस्तान के बगराम एसरबेस पर नजरें गढ़ाए बैठा है, वहीं तालिबान आर्थिक संकट से उभरने के लिए हवाई पट्टी को किसी देश को देने के लिए प्रयासरत है।
बता दें कि जब से तालिबान ने सत्ता संभाली है तब से चीन के शीर्ष नेता कई बार तालिबानी प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात कर चुके हैं। तालिबान के रक्षामंत्री मुल्ला याकूब को इस्लामिक स्टेट का डर सता रहा है। उसे लग रहा है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई समर्थित गृहमंत्री और सिराजुद्दीन हक्कानी के बीच जारी टकराव जारी है जिसका फायदा दूसरे आतंकी संगठन उठा रहे हैं। अमेरिका अलकायदा और हक्कानी नेटवर्क को लेकर चिंतित है। वहीं इस्लामिक स्टेट भी अफगान में खुद को मजबूत करने की कोशिशों में लगा हुआ है।
मौजूदा वक्त में अमेरिका अल कायदा और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकी संगठनों को लेकर चिंतित है क्योंकि हक्कानी नेटवर्क तालिबान सरकार चला रही है। इस्लामिक स्टेट आफ खोरासन भी अफगानिस्तान में अपने पैर पसार रहा है। चीन उइगर आतंकियों को लेकर बेहद अलर्ट है तो भारत जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों से अलर्ट है। चीन अपने वखान कॉरिडोर को लेकर भी चिंतित है जिस पर उसके अरबों डॉलर लग चुके हैं।
वहीं माओ अफगानिस्तान में नजर बनाए रखने व चाइना अपने प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को लेकर पाक की तहरीक-ए तालिबान,बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी, इस्लामिक स्टेट आॅफ खोरासन जैसे आतंकी संगठन चीन के लिए समस्या पैदा कर सकते हैं।
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