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सर्दी ने दस्तक दे दी है और हल्की फुल्की सर्दियां शुरू भी हो चुकी हैं और अगर आपको मार्केट में मिलने वाले च्यवनप्राश की गुणवत्ता पर जरा भी संदेह हो तो स्वयं भी बना सकते हो, नहीं हम तो हैं ही…वायरस को मारने के लिये और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिये ये सर्वोत्तम प्राकृतिक उपहार है।
आमले की प्रचुरता लिए अनेक आयुर्वेदिक जड़ीबूटियो का मिश्रण च्यवनप्राश, एक आयुर्वेदिक एवं प्राकृतिक उपचार है जो शरीर की प्रतिरोधी क्षमता अर्थात इम्युनिटी को बढ़ाता है और संक्रमण के खिलाफ लड़ने में मदद करता है। सर्दियों में इसका उपयोग अधिक किया जाता है जो सर्दियों में होने वाली संक्रमण (इन्फेक्शन) और एलर्जी जनित बीमारियों के खिलाफ संरक्षण प्रदान करता है।
इसके सेवन से खांसी, श्वास, प्यास, वातरक्त, छाती का जकड़ना, वातरोग (गैस), पित्तरोग (एसिडिटी), शुक्रदोष एवं मूत्रदोष आदि नष्ट हो जाते हैं। यह शारीरिक वृद्धि और स्मरण शक्ति को बढाता है इसलिए बालक एवं बुजुर्गों के लिए भी इसका सेवन लाभवर्धक हैं..
10 से 20 ग्राम च्यवनप्राश का सेवन सुबह और सांयकाल साथ कर सकते है। बाज़ार में बने बनाये च्यवनप्राश हमेशा उपलब्ध होते है, पढ़िए इसके बनाने के बारे में,
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सामग्री
1.आंवला – 7kg
२.क्वाथ द्रव्य (प्रत्येक द्रव्य 50 gms)-
पाटला, अरणी, गंभारी, बेल (विल्व), श्योनाक (अरलू), छोटी कटेली, बड़ी कटेली, छोटी पीपल, काकडासिंगी, मुनक्का, गिलोय, बड़ी हरड़, खरेटी, भूमि आंवला, अडूसा, जीवन्ती, कचूर, नागरमोथा, पुष्करमूल, कोआढोडी (काकनासा), मूंगपर्णी, मासपर्णी, विदारीकन्द, साठी, कमलगट्टा, छोटी ईलायची, अगर, चन्दन साल.
अष्टवर्ग के अभाव में प्रतिनिधि द्रव्य (शतावरी, अश्वगंधा, वाराहीकन्द, विदारीकन्द)
3. यमक सामग्री–
तिल का तेल 250ml + घी 250 gms लेने का विधान है।
परन्तु तेल हल्का होने से ऊपर आ जाने से पाठ का स्वाद सही नहीं होता है अतः तेल की जगह देसी गाय का घी 500 ग्राम लेना चाहिये।
4. संवाहक सामग्री – देसी खांड 5 kg
5. प्रक्षेप द्रव्य –
वंशलोचन 150 ग्राम,
पीपल 100 ग्राम,
दालचीनी 10 ग्राम,
तेजपता 10 ग्राम,
नागकेसर 10 ग्राम,
छोटी ईलायची 10 ग्राम,
शहद 500 ग्राम
सबसे पहले क्वाथ द्रव्यों को जौ कूट चूर्ण करके, सभी को 24 घन्टे के लिए 16 लीटर पानी में भिगोकर रखें। प्रात:काल आंवलों को कपड़े की पोटली में बाँध लें और स्टील के बड़े भगोने पर डंडा रखकर पोटली को बाँध दें। भगोनें में पानी समेत, जो क्वाथ द्रव्य रात को भिगोयें थे डाल दें।
यह ध्यान रहे की आंवले की पोटली भगोनें के तले में नहीं लगें, बल्कि पानी में अधर या लटकी रहे। भगोनें को आंच पर रखें और आंवलों को पोटली के अन्दर ही पानी में उबलने दे, ये ध्यान रखें कि जब आधा पानी रह जाए, तब आंवलों को दबायें।
जब आंवले हल्के हल्के दबने लग जाये तब आवलों की पोटली को भगोनें से निकालकर रख लें। शेष पानी को छाने, छानने से निकली औषधियों को फ़ेंक दे पर छाने हुए पानी को अलग रखें। अब स्टील का भगोना लेकर, उसपर बारीक़ स्टील की चलनी रखें या बारीक़ सूती कपड़ा भगोनें पर बांधकर आवलों की गुदी निकालकर रंगड़ते जाये। गूदा (पीठी) भगोनें में इकट्ठा हो जायेगा।
आवलें के रेशे व गुदी अलग कर दें। भगोने में आँवले की पीठी इकट्ठी होने पर अलग भगोने में घी डालकर गर्म करें, उसमें आवलें की पीठी डालकर चलाते रहें। ज्यादा तेज आँच नहीं दें, हल्की आँच पर सेंके। सिंकते सिंकते आंवले की पीठी गुलाबी रंग की हो जायेगी और घी छोड़ देगी, तब उसे उतार लें।
इसके उपरान्त जो औषधियों का पानी बचा है, उसे गैस पर रखें, आधा पानी शेष रहने पर उसमें केमिकलमुक्त देसी खांड डालकर चासनी बनायें। एक तार की चासनी आने पर उसमें सिकी हुई आंवले की पीठी मिलाये चलाते रहें। जब वह गाढ़ा हो जाये, अवलेह की तरह हो जाये तो उसे गैस से उतारकर उसमें प्रक्षेप द्रव्यों को बारीक़ कूटकर चलनी से छानकर रखें।
और धीरे-धीरे उसमें मिला देवें। अवलेह ठंडा होने पर शहद मिला दें। बिल्कुल ठंडा होने पर डिब्बे आदि में भरकर रखें।
च्यवनप्राश को और अधिक स्पेशल बनाना है, तो इसमें चिकित्सक की सलाह से सिद्धमकरध्वज, अभ्रकभस्म, श्रंगभस्म, शुक्तिभस्म, चादीं के वर्क और केसर इन चीजों को मिलाकर सेवन करने से गुणों में अत्यन्त वृद्धि हो जाती है।
(Amazing Chyawanprash for Your Health)
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